Tuesday, April 23, 2024

अरबपति ने 200 करोड़ की प्रॉपर्टी दान करके पत्नी के साथ लिया संन्यास

24 April 2024

https://azaadbharat.org 


🚩विश्व में एक तरफ पैसा कमाने की होड़ लगी हुई है और जीवन में पैसा ही सबकुछ है , पैसा नही है तो कुछ नही एक तरफ ऐसी विचारधारा चल रही है दूसरी तरफ अपनी अरबों की संपत्ति दान करके संन्यास ले रहे हैं, जैसे राज कुमार ने राजपाट छोड़कर संन्यास लिया और भगवान बुद्ध बन गए, राजा भृतहारी, राजा गोपीचंद जैसे अनेक उदाहरण है जिन्होंने राजपाट धन संपत्ति भोग विलास छोड़कर संन्यास ले लिया और कठोर तपस्या किया और भगवान की प्राप्ति कर लिया फिर समाज में ज्ञान, सुख, शांति बांटकर लाखो करोड़ो लोगो के दिलों में सुख शांति पहुंचाई। इसलिए जीवन में सबकुछ पैसे ही नही शांति और आनंद की अत्यंत आवश्कता है और वो केवल भगवान की भक्ति, ज्ञान से प्राप्त होती हैं।


🚩200 करोड़ रुपयों दान करके बने संन्यासी 


🚩गुजरात के अरबपति व्यापारी और उनकी पत्नी ने अपनी जीवन भर की सारी कमाई (करीबन 200 करोड़ रुपयों) को दान करके जैन संन्यासी बनने का निर्णय लिया है। इस व्यापारी का नाम भावेश भंडारी है। वह गुजरात के हिम्मतनगर के रहने वाले हैं।


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भावेश भंडारी का जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था। जब उन्होंने कारोबार की दुनिया में कदम रखा तो कंस्ट्रक्शन समेत कई क्षेत्रों में अपनी किस्मत आजमाई। धीरे-धीरे वह भारत के अरबपतियों की लिस्ट में शामिल हो गए। मगर, समय के साथ आगे बढ़ने की इच्छा की जगह उनका मन मोह-माया से उजड़ने लगा। नतीजतन उन्होंने खुद को अपने काम धंधे से दूर कर लिया और फिर जैन दीक्षा लेने का निर्णय लिया।


🚩आपको जानकर शायद हैरानी हो कि भावेश भंडारी के साथ न केवल उनकी पत्नी ने संन्यासी होने का जीवन चुना है, बल्कि उनके 2 बच्चे भी उनसे पहले सांसरिक मोह-माया त्यागकर दीक्षा ले चुके हैं। हाल में दोनों पति-पत्नी ने 4 किलोमीटर की शोभा यात्रा भी निकाली थी जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे।

https://twitter.com/PTI_News/status/1780055695531938303?t=HgcxIIAapcOeg-7l0VloLg&s=19


🚩बता दें कि पूरे परिवार द्वारा भिक्षु बनने का निर्णय लिए जाने के बाद भावेश भंडारी ने अपनी 200 करोड़ रुपए की संपत्ति को दान कर दिया। हालाँकि अभी उन्होंने औपचारिक रूप से दीक्षा नहीं ली है। 22 अप्रैल को संभवत: वह जैन भिक्षु बनने के लिए दीक्षा लेंगे। उसके बाद उन्हें भिक्षुओं जैसा जीवन ही जीना होगा। जैसे अपनी प्रतिज्ञा लेने के बाद उन्हें पारिवारिक रिश्तों से दूर रहना होगा। किसी सांसरिक वस्तु का भोग करने की अनुमति नहीं होगी। वो सिर्फ नंगे पाँव चलेंगे और भिक्षा माँगेंगे। उन्हें सिर्फ सफेद वस्त्र पहनने होंगे, वस्तु के नाम पर एक कटोरा रखना होगा और राज्यारोहण। इसका प्रयोग वह कहीं बैठने से पहले जगह साफ करने के लिए करेंगे।


🚩पूर्व में भी कई अरबों पति और राजे महाराजे अपना धन वैभव छोड़कर ईश्वर के रास्ते चले है जिसके कारण उन्होंने वास्तविक सुख, आनंद और शांति पाई है।


🔺 Follow on


🔺 Facebook


https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:


http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:


twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:


https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, April 21, 2024

महावीर स्वामी जी को निंदकों ने कितना पीड़ित किया था? जानिए.....

 22 April 2024

https://azaadbharat.org


🚩जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मकल्याणक महोत्सव चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन है,जो सम्पूर्ण विश्व में बहुत धूमधाम से मनाया जाएगा।


🚩भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत बताए, जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं। ये सिद्धांत हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।


🚩जैसे हर संत के जीवन में देखा जाता है,वैसे महावीर स्वामी के समय भी देखा गया…… जहाँ उनसे लाभान्वित होनेवाले लोग थे, वहीं समाजकंटक निंदक भी थे ।


🚩उनमें से पुरंदर नाम का निंदक बड़े ही क्रूर स्वभाव का था । वह तो महावीर जी के मानो पीछे ही पड़ गया था । उसने कई बार महावीर स्वामी को सताया, उनका अपमान किया पर संत ने माफ कर दिया ।



🚩एक दिन महावीर स्वामी (Mahavir Swami) पेड़ के नीचे ध्यानस्थ बैठे थे । तभी घूमते हुए पुरंदर भी वहाँ पहुँच गया । वह महावीर जी को ध्यानस्थ देख आग-बबूला होकर बड़बड़ाने लगा ,अभी इनका ढोंग उतारता हूँ,अभी मजा चखाता हूँ….।


और आवेश में आकर उसने एक लकड़ी ली और उनके कान में खोंप दी । कान से रक्त की धार बह चली लेकिन महावीर जी के चेहरे पर पीड़ा का कोई चिह्न न देखकर वह और चिढ़ गया और कष्ट देने लगा ।


🚩इतना सब होने पर भी महावीरजी किसी प्रकार की कोई पीड़ा को व्यक्त किये बिना शांत ही बैठे रहे । परंतु कुछ समय बाद अचानक उनका ध्यान टूटा, उन्होंने आँख खोलकर देखा तो सामने पुरंदर खड़ा है । उनकी आँखों से आँसू झरने लगे ।


🚩पुरंदर ने पूछा : क्या पीड़ा के कारण रो रहे हो ?


महावीर स्वामी : नहीं, शरीर की पीड़ा के कारण नहीं,


पुरंदर : तो किस कारण रो रहे हो ?


🚩“मेरे मन में यह व्यथा हो रही है कि मैं निर्दोष हूँ फिर भी तुमने मुझे सताया है तो तुम्हें कितना कष्ट सहना पड़ेगा ! कैसी भयंकर पीड़ा सहनी पड़ेगी ! तुम्हारी उस पीड़ा की कल्पना, करके मुझे दुःख हो रहा है ।”


🚩यह सुन पुरंदर मूक हो गया और पीड़ा की कल्पना से सिहर उठा ।


🚩पुरंदर की नाई गोशालक नामक एक कृतघ्न गद्दार ने भी महावीर स्वामी (Mahavir Swami) को बहुत सताया था ।


🚩महावीर जी के 500 शिष्यों को उनके खिलाफ खड़ा करने का उसका षड्यंत्र भी सफल हो गया था । उस दुष्ट ने महावीर स्वामी जी को जान से मारने तक का प्रयत्न किया लेकिन जो जैसा बोता है उसे वैसा ही मिलता है । धोखेबाज लोगों की जो गति होती है, गोशालक का भी वही हाल हुआ ।


🚩 सच्चे संतों के निंदको व कुप्रचारको ! अब भी समय है, कर्म करने में सावधान हो जाओ । अन्यथा जब प्रकृति तुम्हारे कुकर्मों की तुम्हें सजा देगी उस समय तुम्हारी वेदना पर रोनेवाला भी कोई न मिलेगा ।


🔺 Follow on


🔺 Facebook


https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:


http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:


 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:


https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Saturday, April 20, 2024

हिंदू विवाह में रीति-रिवाज और उनका महत्व

21 April 2024

https://azaadbharat.org 


🚩हिंदू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। यह पति और पत्नी के बीच एक आध्यात्मिक संबंध है जो उन्हें एक साथ जीवन भर रहने के लिए बाध्य करता है। हिंदू विवाह में कई रीति-रिवाज और परंपराएं शामिल हैं जो इस बंधन को और अधिक पवित्र और मजबूत बनाती हैं।


🚩परंपरागत सौंदर्य में गहराई:

हिंदू विवाह के रीति-रिवाजों में सौंदर्य और गहराई होती हैं, जो इसको विशेष बनाती हैं। विवाह समारोहों में पूरे हवाएं भगवान की कृपा और आशीर्वाद की ओर इशारा करती हैं। रंग-बिरंगे वस्त्र, शानदार आभूषण, और परंपरागत संगीत के साथ रीति-रिवाज विवाह को यादगार बना देते हैं।


🚩परिवार समर्थन और एकता का प्रतीक:

रीति-रिवाजों में छुपा होता है एक विशेष आदर्श, जिसमें परिवार का समर्थन और एकता का महत्वपूर्ण स्थान है। यह एक परिवार को एक साथ बाँधने वाला एक महत्वपूर्ण रूप है जो विवाह के माध्यम से स्थापित होता है।


🚩धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व:

रीति-रिवाजें हिंदू धर्म के मौल्यों और आध्यात्मिकता की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। विवाह के साक्षात्कार में धार्मिक संबंध स्थापित करना और आध्यात्मिक आदर्शों का पालन करना एक व्यक्ति को अपने जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं में मदद कर सकता है।


🚩समृद्धि की ओर प्रगाधित:

रीति-रिवाजों के पालन से विवाह को एक समृद्धिपूर्ण और सुखमय जीवन की ओर प्रगाधित किया जा सकता है। सांस्कृतिक रूप से शुद्ध और धार्मिक तत्वों का पालन करना व्यक्ति को समृद्धि और शांति की दिशा में मार्गदर्शन कर सकता है।


🚩हिंदू विवाह के रीति-रिवाज


🚩हिंदू विवाह के रीति-रिवाज को आमतौर पर 3 भागों में बांटा जाता है:


🚩पूर्व-विवाह समारोह

विवाह समारोह

विवाह के बाद के समारोह


🚩पूर्व-विवाह समारोह


🚩पूर्व-विवाह समारोह में वे सभी रीति-रिवाज शामिल होते हैं जो विवाह से पहले होते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:


🚩अंतर्दीक्षा: यह एक अनुष्ठान है जिसमें वर और वधू अपनी भावनाओं और इच्छाओं का मूल्यांकन करते हैं।


🚩परिवार के साथ चर्चा: दोनों परिवारों के बीच विवाह के लिए बातचीत होती है।


🚩शादी की तारीख और समय का निर्धारण: एक पुजारी की मदद से शादी की तारीख और समय का निर्धारण किया जाता है।


🚩शादी की व्यवस्था: शादी के लिए आवश्यक सभी व्यवस्थाओं को किया जाता है, जैसे कि भोजन, सजावट, और संगीत।

विवाह समारोह


🚩विवाह समारोह में वे सभी रीति-रिवाज शामिल होते हैं जो विवाह के दिन होते हैं। 


🚩इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:


🚩हवन: यह एक अनुष्ठान है जिसमें अग्नि के सामने वर और वधू को वरमाला पहनाया जाता है।


🚩पाणिग्रहण: यह एक अनुष्ठान है जिसमें वर और वधू एक दूसरे के हाथों को पकड़ते हैं और एक-दूसरे को जीवन भर का साथ देने का वादा करते हैं।


🚩मंगलासूत्र बंधन: यह एक अनुष्ठान है जिसमें वर वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाता है। मंगलसूत्र को विवाहित महिला की पहचान का प्रतीक माना जाता है।


🚩सप्तपदी: यह एक अनुष्ठान है जिसमें वर और वधू सात फेरे लेते हैं। सात फेरे विवाह के सात वचनों का प्रतीक हैं।


🚩अग्नि परिक्रमा: यह एक अनुष्ठान है जिसमें वर और वधू अग्नि के चारों ओर सात बार चक्कर लगाते हैं। यह अनुष्ठान विवाहित जोड़े के बीच विश्वास और प्रेम को मजबूत करने का प्रतीक है।


🚩विवाह के बाद के समारोह


🚩विवाह के बाद के समारोह में वे सभी रीति-रिवाज शामिल होते हैं जो विवाह के बाद होते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:


🚩भात-भोजन: यह एक समारोह है जिसमें वर और वधू को पहली बार घर पर भोजन कराया जाता है।


🚩नंदलाज: यह एक समारोह है जिसमें दूल्हे के घरवालों को वधू के घर से उपहार दिए जाते हैं।


🚩विदाई: यह एक समारोह है जिसमें दुल्हन अपने घर से विदा होती है और अपने नए घर जाती है।


🚩हिंदू विवाह में रीति-रिवाजों का महत्व


🚩हिंदू विवाह में रीति-रिवाजों का बहुत महत्व है। ये रीति-रिवाज विवाह को एक पवित्र बंधन बनाते हैं और इसे और अधिक मजबूत और लंबे समय तक चलने वाला बनाते हैं।

पूर्व-विवाह समारोह में शामिल रीति-रिवाज विवाह के लिए दोनों पक्षों की तैयारी का प्रतीक हैं।


🚩विवाह समारोह में शामिल रीति-रिवाज विवाह के सात वचनों को साकार करते हैं।


🚩विवाह के बाद के समारोह में शामिल रीति-रिवाज विवाहित जोड़े के बीच प्रेम और विश्वास को मजबूत करते हैं। ये रीति-रिवाज नए जोड़े को उनके नए जीवन की शुरुआत में आशीर्वाद और समर्थन प्रदान करते हैं।


🚩हिंदू विवाह की रीति-रिवाज आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पहले थे। ये रीति-रिवाज विवाह को एक महत्वपूर्ण और यादगार अनुभव बनाते हैं। वे वर और वधू के साथ-साथ उनके परिवारों और दोस्तों के लिए जीवन भर की खुशियों का आधार बनते हैं।


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Friday, April 19, 2024

IIT बॉम्बे में रामायण के नाम पर हिन्दू धर्म का किया बड़ा अपमान

20 April 2024

https://azaadbharat.org

🚩राष्ट्र विरोधी के निशाने पर हमेशा हिंदू धर्म रहा है, लगातार हिंदू धर्म का अपमान किया जा रहा है पर अभी तक कोई सरकार ने ठोस कार्रवाई नही की ।

🚩कभी हिंदू देवी-देवताओं का अपमान तो कभी साधु-संतों का अपमान तो कभी हिंदू संस्कृति का मजाक तो कभी हिन्दू त्यौहार पर खिल्ली उड़ाना आदि अनेक तरीके फिल्मों, सीरियलों, विज्ञापनों , नाटिकाओं आदि द्वारा हिंदुओं की भावनाओ को आहत किया जा रहा है पर अभी तक इसपर कोई रोक नहीं लगा पाया।


🚩IIT बॉम्बे में रामायण पर खेले जा रहे नाटक के दौरान हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाने का मामला सामने आया है। इसके कई वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। इससे पहले पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी में एक ऐसा ही मामला सामने आया था। दरअसल, महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में स्थित IIT बॉम्बे में कल्चरल फेस्ट का आयोजन किया गया था। 31 मार्च को ‘परफॉर्मिंग आर्ट्स फेस्टिवल’ हुआ। ये रामायण पर आधारित था और इसमें भगवान राम की ही आलोचना की गई।


🚩‘राहोवन’ नाम के इस नाटक में नारीवादी मुद्दों के नाम पर भगवान राम के किरदार से ही छेड़छाड़ की गई। पात्रों के नामों में हल्का बदलाव किया गया था। इसमें सीता कहती है, “स्वामी, ऐसी अवस्था में ये अकेली सुहागन अपना हृदय सँभाल किसके साथ करे?” इस पर सामने से राम का पात्र कहता है, “खोल”। ‘क्या’ का वो जवाब देता है – ‘संकोच’। एक अन्य दृश्य में राम से कहलवाया गया है, “तू किसी दूसरे कबीले में जा किसी दूसरे मर्द के यहाँ रह आई, इसीलिए ये कबीला तेरा स्वीकार वापस नहीं करेगा।”


🚩इस पर सीता कहती है, “दूसरा मर्द, अरे बंदी थी मैं वहाँ?” इस पर राम आरोप लगाते हैं कि सीता ने कबीले की सीमा लाँघी, रेखा का उल्लंघन किया। राम से कहलवाया गया है, “तू कुछ नहीं कहेगी, सिर्फ मेरी सुनेगी।” फिर सीता कहती हैं, “मर्द होने निकला था तू, इंसान बनना भूल गया।” इस पर राम कहते हैं, “अब एक औरत समझाएगी मुझे कि मर्द बनना क्या होता है?” एक दृश्य में सीता कहती है, “एक अलग दुनिया है वहाँ। और अच्छा हुआ, अघोरा (रावण) मुझे वहाँ लेकर गया।”


🚩सीता आगे कहती हैं, “वहाँ की औरतों को अच्छी प्रतिष्ठा मिलती है। उसने मुझसे खुद बोला कि मेरी अनुमति के बिना मुझे छुएगा भी नहीं। उसमें मुझे ऐसा मर्द दिखा जो मुझे इस कबीले में नहीं दिखा। तुमलोग जश्न मना रहे थे न कि दानव को मार दिया। असली दानव तो आपने आज तक मारा ही नहीं है।” रामायण पर नाटक के नाम पर आजकल हिन्दू देवी-देवताओं के अपमान का एक ट्रेंड सा आया हुआ है। इसमें पौराणिक पात्रों से कुछ भी कहलवा दिया जाता है।


🚩हाल ही में पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी में ऐसे ही एक मामले को लेकर न सिर्फ आंतरिक जाँच समिति बनी है, बल्कि FIR भी दर्ज हुई है। HoD को भी जाँच पूरी होने तक हटाया गया है। सीता हरण वाले दृश्य में दिखाया गया कि माँ सीता रावण को गोमांस खाने के लिए दे रही हैं। इसमें सीता वाले किरदार से कहलवाया गया है, “मैं शादीशुदा हूँ, लेकिन हम दोस्त बन सकते हैं।” इसमें हनुमान जी की पूँछ को एंटीना के रूप में दिखाया गया। सीता को रावण के साथ नाचते हुए भी दिखाया गया।


🚩मानवता के विरोधियों के निशाने पर हमेशा हिंदू धर्म रहा है, बॉलीवुड के जरिये हमेशा हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने का प्रयास किया गया है।


🚩हिंदुस्तानी इस षड्यंत्र को समझ गए हैं और कुछ हिंदुनिष्ठ लोग खुलकर विरोध भी करने लगे है।


🚩जनता की मांग है कि सरकार को ऐसी फिल्मों , सीरियलों, नाटिकाओं ओर शो पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहिए।


🔺 Follow on


🔺 Facebook


https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:


http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:


twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:


https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, April 18, 2024

हाल के वर्षों में हिंसा ने रामनवमी उत्सव को कैसे प्रभावित किया है ?

19 April 2024

https://azaadbharat.org 


🚩भगवान श्री रामजी के अवतरण पर रामनवमी पर हिंदू हर्षोल्लास से मानते है। लेकिन कट्टरपंथी हिंदुओं को अपने त्योहार भी खुशी से मनाने नही देते हैं, कुछ दिन पहले मुस्लिम समुदाय का त्योहार ईद मनाया गया लेकिन किसी भी हिन्दू ने एक पत्थर भी नही मारा जबकि कई जगह पर सड़को पर भी नमाज पढ़ी गई फिर भी कोई हिंसा नही हुई, लेकिन जैसी ही राम नवमी पर हिंदू अपना त्योहार मनाने लगे तो इस्लामी कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आए और कुछ तथाकथित सेकुलर नेता बोलते है की संवेदनसिल इलाके से हिंदुओं को यात्रा नही निकालना चाहिए लेकिन सवाल ये है की संवेदनसिल इलाका कहा से आ गया भारत देश एक ही है, पाकिस्तान नही है जब भारत देश एक ही है फिर संवेदनसिल इलाका कोई नही होता है, वोट बैंक के लिए कुछ स्वार्थी नेताओं ने संवेदनसिल इलाका बना दिया है, पूरा भारत एक ही हैं। सभी धर्मो के लोगों को अपना त्योहार शांतिपूर्ण मनाना देना चाहिए।


🚩हाल के वर्षों में, रामनवमी समारोह के परिणामस्वरूप देश भर में हिंसक झड़पें हुई हैं। जो अनिवार्य रूप से भगवान राम के जन्म का उत्सव है, उसने 2017 के बाद से एक हिंसक मोड़ ले लिया है।


🚩हाल के वर्षों में, रामनवमी समारोह ने हिंसक रूप ले लिया है। झड़पों और दंगों से घिरे, भगवान राम के जन्मदिन का जश्न मनाने के लिए 2017 से जुलूसों पर पत्थरों, चाकुओं और यहां तक कि बंदूकों के साथ हमला किया गया है। जैसे ही हम इस वर्ष के जश्न की ओर बढ़ते हैं, पिछले वर्षों की हिंसा का संकेत मिलता है।


🚩राम नवमी एक हिंदू त्यौहार है जो हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित देवताओं में से एक, भगवान राम के जन्मदिन का जश्न मनाता है। यह त्यौहार चैत्र नवरात्रि उत्सव के अंत का भी प्रतीक है।


🚩रामनवमी से एक दिन पहले कलकत्ता हाई कोर्ट ने विश्व हिंदू परिषद और अंजनी पुत्र सेना को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में जुलूस निकालने की इजाजत दे दी थी।


🚩2017 से, पश्चिम बंगाल में रामनवमी समारोह के दौरान झड़पें देखी गई हैं और पिछले साल भी कुछ अलग नहीं था। हावड़ा, दालखोला और पूर्वी राज्य के अन्य शहरों में झड़पें हुईं। हालाँकि, बंगाल एकमात्र राज्य नहीं है जहाँ रामनवमी समारोह हिंसा का शिकार हुआ।   


🚩रामनवमी और हिंसा - एक नज़र


🚩राम नवमी उत्सव कम से कम छह राज्यों - पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात में हिंसक हो गया।


🚩पश्चिम बंगाल में हावड़ा, हुगली, शिबपुर और दालखोला से हिंसा की खबरें आईं। पूरे शहर में वाहनों को आग लगा दी गई, दुकानों में तोड़फोड़ की गई और पथराव किया गया। बंगाल में भी झड़पों में एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।


🚩महाराष्ट्र में , औरंगाबाद में एक राम मंदिर के बाहर दो व्यक्तियों के बीच विवाद झड़प में बदल गया और लोगों ने पथराव किया और वाहनों में आग लगा दी। इन झड़पों में 51 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। औरंगाबाद के साथ-साथ मलाड और जलगांव में भी झड़प हुई.


🚩गुजरात में भी हिंसा भड़क उठी , जहां वडोदरा में दो रामनवमी जुलूसों पर हमला किया गया। विश्व हिंदू परिषद द्वारा निकाले गए जुलूस पर फ़तेहपुर इलाके में हमला किया गया। हालांकि झड़प का सटीक कारण स्पष्ट नहीं है, सोशल मीडिया पर रिपोर्टों और वीडियो में भीड़ को जुलूस के दौरान सांप्रदायिक रूप से आरोपित टिप्पणियां करते हुए दिखाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप तनाव बढ़ गया।


🚩रामनवमी के दौरान कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में भी हिंसक झड़पें हुईं। दोनों राज्यों में, जैसे ही रामनवमी जुलूस मस्जिदों से होकर गुजरा, झड़पें बढ़ गईं।   


🚩इसके अलावा, बिहार में , रामनवमी जुलूस के हजरतगंज मोहल्ला क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश के बाद झड़पें हुईं, जिसकी अनुमति नहीं दी गई थी।


🚩इन छह राज्यों के अलावा, हरियाणा में भी रामनवमी के दौरान सांप्रदायिक तनाव की सूचना मिली, जब एक जुलूस के सदस्यों ने एक मस्जिद पर अपने झंडे फहराए और जुलूस के दौरान सांप्रदायिक नारे लगाए।


🚩रामनवमी के दौरान हिंसा कोई दुर्लभ घटना नहीं है लेकिन तुलनात्मक रूप से सीमित थी। 2012 से 2015 के बीच पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश से कुछ झड़पें हुईं।


🚩हालाँकि, 2017 के बाद से त्योहार के दौरान हिंसक झड़पों की घटनाएं बढ़ गईं। 2018 में, देश भर में झड़पों या दंगों की 17 घटनाएं दर्ज की गईं और 2022 में, पांच राज्यों (झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात और गोवा) और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में भी राम नवमी के दौरान हिंसा की सूचना मिली। - आउटलुक


🚩राम नवमी पर देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा की गई, हर जगह निशाने पर थे हिंदू। पत्थरबाजी से एक कदम आगे बढ़ बमबाजी और आगजनी करके हिंदुओं को खौफ में रखने का षड्यंत्र किया गया। दो कदम आगे बढ़ प्रोपेगेंडा फैलाया गया कि हिंसा हिंदुओं ने ही की, वो मुस्लिमों को सता रहे। ‘शांतिप्रिय’ इस्लामी इकोसिस्टम के कट्टर मुस्लिम सिपाहियों ने इस प्रोपेगेंडा की पटकथा लिखी। इसे दूर-दूर तक फैलाने का काम किया वामपंथी इकोसिस्टम ने।


🚩हिंदुओं की मांग है की हम किसी अन्य त्योहार में दखल नहीं करते है फिर हमारे त्योहार हमे शांतिपूर्ण क्यों नही मनाने दिया जा रहा है? इनपर सरकार कड़ी कार्यवाही करें यही मांग हैं।


🔺 Follow on


🔺 Facebook


https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:


http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:


twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:


https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, April 17, 2024

भगवान श्री राम का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव क्यों हैं? उनमें कितनी कला थी?

18 April 2024

https://azaadbharat.org 

🚩वर्तमान संदर्भों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों का जनमानस पर गहरा प्रभाव है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं।


🚩संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है।


🚩प्रभु श्रीराम को पुरुषों में सबसे उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। वे एक आदर्श व्यक्तित्व लिए हुए थे। एक धनुष और एक वचन धारण करने वाले थे। उन्होंने एक पत्नी व्रत भी धारण कर रखा था। उनमें इसी तरह के 16 गुण थे। 16 गुणों के अलावा वे 12 कलाओं से युक्त थे।


🚩श्रीराम हैं 12 कलाओं से युक्त 


🚩16 कलाओं से युक्त

व्यक्ति ईश्वरतुल्य होता है या कहें कि स्वयं ईश्वर ही होता है। पत्थर और पेड़ 1 से 2 कला के प्राणी हैं। पशु और पक्षी में 2 से 4 कलाएं होती हैं। साधारण मानव में 5 कला और संस्कृति युक्त समाज वाले मानव में 6 कला होती है।


🚩इसी प्रकार विशिष्ठ पुरुष में 7 और ऋषियों या महापुरुषों में 8 कला होती है। 9 कलाओं से युक्त सप्तर्षिगण, मनु, देवता, प्रजापति, लोकपाल आदि होते हैं। इसके बाद 10 और 10 से अधिक कलाओं की अभिव्यक्ति केवल भगवान के अवतारों में ही अभिव्यक्त होती है। जैसे वराह, नृसिंह, कूर्म, मत्स्य और वामन अवतार। उनको आवेशावतार भी कहते हैं। उनमें प्रायः 10 से 11 कलाओं का आविर्भाव होता है। परशुराम को भी भगवान का आवेशावतार कहा गया है।


🚩भगवान राम 12 कलाओं से तो भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं से युक्त हैं। यह चेतना का सर्वोच्च स्तर होता है। इसीलिए प्रभु श्रीराम को पुरुषों में उत्तम और भगवान और श्रीकृष्ण को जग के नाथ जगन्नाथ और जग के गुरु जगदगुरु कहते हैं। जग में सुंदर है दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम।


🚩16 गुणों से युक्त :


1. गुणवान (योग्य और कुशल)

2. किसी की निंदा न करने वाला (प्रशंसक, सकारात्मक)

3. धर्मज्ञ (धर्म का ज्ञान रखने वाला)

4. कृतज्ञ (आभारी या आभार जताने वाला विनम्रता)

5. सत्य (सत्य बोलने वाला और सच्चा)

6. दृढ़प्रतिज्ञ (प्रतिज्ञा पर अटल रहने वाला, दृढ़ निश्चयी)

7. सदाचारी (धर्मात्मा, पुण्यात्मा और अच्छे आचरण वाला, आदर्श चरित्र)

8. सभी प्राणियों का रक्षक (सहयोगी)

9. विद्वान (बुद्धिमान और विवेक शील)

10. सामर्थशाली (सभी का विश्वास और समर्थन पाने वाला समर्थवान)

11. प्रियदर्शन (सुंदर मुख वाला)

12. मन पर अधिकार रखने वाला (जितेंद्रीय)

13. क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज)

14. कांतिमान (चमकदार शरीर वाला और अच्छा व्यक्तित्व)

15. वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट)

16. युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें : (वीर, साहसी, धनुर्धारि, असत्य का विरोधी)



🚩आदिकवि ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।


🔺 Follow on


🔺 Facebook


https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:


http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:


twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:


https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, April 16, 2024

भगवान श्री राम का जन्म क्यों, कहा, कैसे हुआ था? उस समय माहोल कैसा था?

17 April 2024

https://azaadbharat.org

🚩श्री राम में अत्यंत विलक्षण प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरूप अल्प काल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गए। उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एवं सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई। वे निरंतर माता- पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे। उनका अनुसरण शेष तीन भाई भी करते थे। गुरुजनों के प्रति जितनी श्रद्धा भक्ति इन चारों भाइयों में थी, उतना ही उनमें परस्पर प्रेम और सौहार्द भी था। महाराज दशरथ का हृदय अपने चारों पुत्रों को देखकर गर्व और आनंद से भर उठता था।


🚩कैसे हुआ श्रीराम का जन्म :

रामचरितमानस के बालकांड के अनुसार पुत्र की कामना के चलते राजा दशरथ के कहने पर वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। इस यज्ञ के बाद कौसल्या आदि प्रिय रानियों को यज्ञ का प्रसाद खाने पर पुत्र की प्राप्त हुई।


🚩2. कब हुआ था श्रीराम का जन्म :

पुराणों के अनुसार प्रभु श्रीराम का जन्म त्रेतायुग और द्वापर युग के संधिकाल में हुआ था। कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था। इसका मतलब 3102+2021 = 5123 वर्ष कलियुग के बीत चूके हैं। उपरोक्त मान से अनुमानित रूप से भगवान श्रीराम का जन्म द्वापर के 864000 + कलियुग के 5123 वर्ष = 869123 वर्ष अर्थात 8 लाख 69 हजार 123 वर्ष हो गए हैं प्रभु श्रीराम को हुए। परंतु यह धारणा इतिहासकारों के अनुसार सही नहीं है, जो वाल्मीकि रामायण में लिखा है वही सही माना जा सकता है।


🚩वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे, तब हुआ था। इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, बृहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था। (बाल कांड 18/श्लोक 8, 9)।... जन्म सर्ग 18वें श्लोक 18- 8-10 में महर्षि वाल्मीकिजी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में हुआ था।


🚩मानस के बाल काण्ड के 190वें दोहे के बाद पहली चौपाई में तुलसीदासजी ने भी इसी तिथि और ग्रह-नक्षत्रों का जिक्र किया है।


🚩3. किस समय हुआ था श्रीराम का जन्म :

 दोपहर के 12.05 पर भगवान राम का जन्म हुआ था। उस समय भगवान का प्रिय अभिजित् मुहूर्त था। तब न बहुत सर्दी थी, न धूप थी।


🚩4. जन्म के समय के ग्रह-नक्षत्र की स्थिति : वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे तब हुआ था। इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, ब्रहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था। (बाल कांड 18/श्लोक 8,9)1


🚩5. कहां हुआ था श्रीराम का जन्म :

 श्री राम का जन्म भारतवर्ष में सरयू नदी के पास स्थित अयोध्या नगरी में एक महल में हुआ था। अयोध्या को सप्त पुरियों में प्रथम माना गया है।


🚩7. जन्म के समय खुशनुमा था माहौलः

वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। जन्म होते ही जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए। शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियां अमृत की धारा बहा रही थीं।


🚩8. देवता उपस्थित हुए :

जन्म लेते ही ब्रह्माजी समेत सारे देवता विमान सजा-सजाकर पहुंचे। निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया। गंधर्वों के दल गुणों का गान करने लगे। सभी देवाता राम लला को देखने पहुंचे।


🚩9. नगर में हुआ हर्ष व्याप्त :

 राजा दशरथ ने नांदीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और द्वीजों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया। संपूर्ण नगर में हर्ष व्याप्त हो गया। ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया। जिस प्रकार से वह सजाया गया। चारों और खुशियां ही खुशियां थीं। घर-घर मंगलमय बधावा बजने लगा। नगर के स्त्री-पुरुषों के झुंड के झुंड जहां-तहां आनंदमग्न हो रहे हैं।


🚩धार्मिक ग्रंथों के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम जी का उद्देश्य रावण जैसे रक्षकों के अत्याचारों का खात्मा तथा अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करना था।


🔺 Follow on


🔺 Facebook


https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:


http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:


twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:


https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ