Saturday, November 25, 2017

निजी अस्पताल मरीज़ों को इंसान नहीं, ग्राहक समझकर लूटते हैं

November 25, 2017  www.azaadbharat.org
डॉक्टर अरुण गदरे और डॉक्टर अभय शुक्ला ने अपनी किताब ‘डिसेंटिंग डायग्नोसिस’ में निजी अस्पतालों के भ्रष्टाचार का जिक्र किया है ।
निजी अस्पतालों में पैसे हड़पने के लिए लोगों को बीमारी के नाम पर डराया जाता है, उन्हें वो टेस्ट करने को कहा जाता है या फिर उन पर वो सर्जरी और ऑपरेशन किए जाते हैं जिसकी कोई जरूरत नहीं होती। साथ ही उन्होंने डॉक्टरी पेशे में कमीशन के चलन की चर्चा की है, यानि डॉक्टरों की दवा कंपनियों या डायग्नोस्टिक सेंटरों के बीच कमीशन को लेकर सांठगांठ ।
patients are treated as customers and are looted by private hospitals 

अगर किसी को बुखार हो जाए या डेंगू हो जाए तो क्या उसके इलाज का बिल 16 लाख रुपये हो सकता है ? ये सवाल ही इस समाचार का आधार है । आपने भी ये अनुभव किया होगा कि हमारे देश के ज़्यादातर निजी अस्पताल मरीज़ों को एक इंसान नहीं बल्कि एक ग्राहक समझते है । मरीज़ उनके लिए केवल सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है जिसे वो जब चाहे काट सकते हैं । कई लोग ये उम्मीद करते हैं कि पांच सितारा सुविधाओंवाले अस्पताल में पहुंचने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा परंतु ऐसा होता नहीं है ! देश के ज़्यादातर निजी अस्पताल छोटी सी बीमारी होने पर भी किसी बिल्डर या प्रॉपर्टी डीलर की तरह आपसे मोटा मुनाफा कमाने की कोशिश करते है और मरीज़ों को लूट लेते हैं !
गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल पर आरोप है कि, उसने एक 7 साल की बच्ची के इलाज के नाम पर करीब 16 लाख रुपये का बिल बना दिया । 30 अगस्त को डेंगू से पीड़ित सात साल की बच्ची को गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती करवाया गया था ।
लगभग 15 दिन के इलाज के बाद आद्या की मृत्यु हो गई और अस्पताल ने माता-पिता को 15 लाख 51 हज़ार रूपये का बिल थमा दिया ! फोर्टिस अस्पताल पर ये आरोप है कि, उसकेद्वारा तैयार किये 19 पन्नों के बिल में बाज़ार से ज़्यादा कीमत पर दवाइयों और मेडिकल इक्विपमेंटस का उपयोग किया है । इसके अलावा इलाज के दौरान की जानेवाली जांच के लिए भी ज़्यादा फीस वसूली गई है !
बच्ची के परिवारवालों का आरोप है कि, उनकी बेटी को तीन दिन तक वेंटिलेटर पर रखा गया जबकि उसपर इलाज का कोई असर नहीं हो रहा था । केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इस पूरे मामले पर फोर्टिस अस्पताल से सफाई मांगी है ।
कुल मिलाकर कहा जाए तो डेंगू जैसी बीमारी के इलाज में रोज़ाना 1 लाख रूपये से ज़्यादा का बिल तैयार करना, चिकित्सा जैसे महान पेशे पर कई गंभीर सवाल खड़े करता है, हमें ये कहते हुए दुख हो रहा है कि वक़्त के साथ डॉक्टरों और निजी अस्पतालों की सोच में बहुत बड़े बदलाव आ गए हैं । अब ये सम्मानजनक पेशा मरीज़ों के दर्द को दूर करने से ज़्यादा पैसा कमाने का ज़रिया बन गया है !
बिल्डर अगर आपसे पैसे लेकर वादा तोड़े और आपको समय पर मकान ना दे तो आप परेशान होकर उसके विरोध में शिकायत करते हैं । इसी तरह अगर टेलिकॉम कंपनी आपको वादे के अनुसार 4जी स्पीड ना दे तो भी आप उस कंपनी के विरोध में आवाज़ उठाते हैं परंतु बीमारियों का इलाज कराने के मामले में ऐसा नहीं होता लोग अस्पताल और डॉक्टर पर आंख बंद करके भरोसा करते हैं और ये सोचते हैं कि, ये पेशा मानवता की सेवा करने का पेशा है इसलिए इसमें धोखे की गुंजाइश बहुत कम है । आज भी लोगों के मन में अस्पतालों और स्कूलों की छवि बहुत साफ है । परंतु इतना भरोसा करने के बाद भी आप सबके साथ धोखा ही होता है !
इस तरह की ख़बरों को देखने के बाद बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि, भारत में मरीज़ों के इलाज से फायदा उठानेवाला एक बहुत बड़ा नेक्सस बन चुका है आप कह सकते हैं कि दवा कंपनियों, डॉक्टरों, निजी अस्पतालों और मेडिकल टेस्ट करनेवाली लॅब्स ने आपको लूटने के लिए अलग अलग तरह की प्राईस लिस्ट बनाई हुई है ।
इस नेक्सस में शामिल लोग बेहतर इलाज के नाम पर मरीज़ों से मोटा बिल वसूलते हैं । आप जब भी बीमार होते हैं तो किसी अस्पताल में जाकर अपना इलाज करवाते हैं इस दौरान आप अपनी दवाओं और मेडिकल प्रोसिजर्स पर जो पैसा खर्च करते हैं उसमें डॉक्टर और अस्पताल से लेकर केमिस्ट और डायग्नोस्टिक लॅब तक सबका हिस्सा होता है । इसे अंग्रेज़ी में Cut और हिंदी में दलाली कहते हैं । ये ऐसी मानसिकता है जो देश के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है !
यहां आपके लिए ये जानना भी ज़रूरी है कि अगर कोई अस्पताल आपके साथ इस तरह की धोखेबाजी करता है तो आप क्या कर सकते हैं ? ऐसा होने पर आप मेडिकल कॉऊन्सिल ऑफ इंडिया को शिकायत कर सकते हैं, ये शिकायत कहां करनी है और कैसे करनी है इसकी जानकारी आप अपनी टेलिविजन स्क्रीन से नोट कर सकते हैं । इसके अलावा आप अस्पतालों और स्वास्थ्य मंत्री के ट्विटर हॅन्डल्स और सोशल मीडिया अकौंट्स को टॅग करके अपनी आवाज़ उठा सकते हैं। स्रोत : झी न्यूज
#स्वास्थ्य मामलों पर काम करने वाले प्रवीण डांग  कहते हैं, "जब मैंने पहली बार एक डॉक्टर की शिकायत के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को पत्र भेजा था तो उसका 15 दिनों में जवाब आ गया था । आज उस बात को तीन साल हो गए हैं । आज तक राज्य काउंसिल जांच पूरी नहीं कर पाई है।
#भारत में #सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं खस्ताहाल होने के कारण निजी #अस्पतालों का 80 प्रतिशत बाजार पर कब्जा है । आरोप लग रहे हैं कि कानूनों के कमजोर क्रियान्वयन के कारण निजी अस्पतालों के जवाबदेही की भारी कमी है ।
मार्च 2016 में अमरीका की '#प्रोपब्लिका' में छपी रिपोर्ट के अनुसार जिन डॉक्टरों को मेडिकल उद्योग से धन मिलता है वो कंपनी के ब्रैंड के पक्ष में दवाइयां लिखते हैं । जिन पांच को मेडिकल कंपनियों की ओर से सबसे ज्यादा धन मिला, उनमें से दो भारतीय मूल के थे।
तो अपने देखा डॉक्टर पैसो के लिए कितने हद तक गिर सकते है । अतः आप जहाँ तक हो सके #ऋषि #मुनियों द्वारा प्रेरित योगा , #प्राणायम करके #स्वस्थ रहे और कोई बीमारी हो तो #आयुर्वेदिक इलाज करवाये नही तो डॉक्टर आपकी भी जिंदगी खराब कर सकते है ।
सभी को #स्वास्थ्य के सम्बन्ध में सजग-सतर्क रहना चाहिए एवं एलोपैथी छोड़कर अपनी #आयुर्वेदिक #चिकित्सा #पद्धति का लाभ लेना चाहिए।

1 comment:

  1. Now a days profession of doctor has become business instead of service.

    Whether doctor is also called God of patients but now few culprits have spoiled name of this profession. Doctor should understand his liabilities & should treat patients properly with honesty.

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