Wednesday, November 29, 2017

जानिये विश्व का सबसे श्रेष्ठ ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता क्यों है? अकबर की रानी भी थी दीवानी

November 29, 2017   www.azaadbharat.org
श्रीमद्भगवद्गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही है ।  गीता जीवन का दृष्टिकोण उन्नत बनाने की कला सिखाती है और युद्ध जैसे घोर कर्मों में भी निर्लेप रहने की कला सिखाती है । मरने के बाद नहीं, जीते-जी मुक्ति का स्वाद दिलाती है गीता !
इस साल श्रीमद्भगवद्गीता जयंती 30 नवम्बर को है।
‘गीता’ में 18 अध्याय हैं, 700 #श्लोक हैं, 94569 शब्द हैं । विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है ।
'यह मेरा हृदय है’- ऐसा अगर किसी ग्रंथ के लिए #भगवान ने कहा है तो वह गीता जी है । गीता मे हृदयं पार्थ । ‘गीता मेरा हृदय है ।’
गीता ने गजब कर दिया - धर्मक्षेत्रे #कुरुक्षेत्रे... युद्ध के मैदान को भी धर्मक्षेत्र बना दिया । #युद्ध के मैदान में गीता ने योग प्रकटाया । हाथी चिंघाड़ रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा प्रतिशोध की आग में तप रहे हैं । किंकर्तव्यविमूढ़ता से उदास बैठे हुए अर्जुन को भगवान  श्रीकृष्ण ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं ।
आजादी के समय #स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के #श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते #फाँसी पर लटक जाते थे।
Why is the world's best scripture to be called Lord Bhagavad Gita

कट्टर मुसलमान की बच्ची और अकबर की रानी ताज भी इस गीताकार के गीत गाये बिना नहीं रहती ।
ताज अपनी एक कविता में कहती है कि...
सुनो दिलजानी मेरे दिल की कहानी तुम ।
दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूँगी मैं ।।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूँ भुलानी ।
तजे कलमा कुरान सारे गुनन गहूँगी मैं ।।
साँवला सलोना सिरताज सिर कुल्ले दिये ।
तेरे नेह दाग में, निदाग हो रहूँगी मैं ।।
नन्द के कुमार कुरबान तेरी सूरत पै ।
हूँ तो मुगलानी, हिन्दुआनी रहूँगी मैं ।।"
अकबर की #रानी ताज अकबर को लेकर आगरा से #वृंदावन आयी । #कृष्ण के मंदिर में आठ दिन तक कीर्तन करते-करते जब आखिरी घड़ियाँ आयी, तब ‘#हे कृष्ण ! मैं तेरी हूँ, तू मेरा है...’ कहकर उसने सदा के लिए माथा टेका और #कृष्ण के चरणों में समा गयी । #अकबर बोलता है : ‘‘जो चीज जिसकी थी, उसने उसको पा लिया । हम रह गये...’’
गीता पढ़कर 1985-86 में गीताकार की #भूमि को प्रणाम करने के लिए #कनाडा के #प्रधानमंत्री मि. #पीअर #ट्रुडो #भारत आये थे ।
ट्रुडो ने कहा है : ‘‘#मैंने #बाइबिल पढ़ी, एंजिल पढ़ी और अन्य धर्मग्रंथ पढ़े । #सब ग्रंथ अपने-अपने स्थान पर #ठीक हैं किंतु #हिन्दुओं का यह ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ ग्रंथ तो अद्भुत है । इसमें किसी मत-मजहब, पंथ या सम्प्रदाय की निंदा-स्तुति नहीं है वरन् इसमें तो #मनुष्यमात्र के विकास की बातें हैं । गीता मात्र हिन्दुओं का ही धर्मग्रंथ नहीं है बल्कि #मानवमात्र का धर्मग्रंथ है ।’’
ख्वाजा दिल मुहम्मद ने लिखा : ‘‘रूहानी गुलों से बना यह गुलदस्ता हजारों वर्ष बीत जाने पर भी दिन दूना और रात चौगुना महकता जा रहा है । यह गुलदस्ता जिसके हाथ में भी गया, उसका जीवन महक उठा । ऐसे #गीतारूपी गुलदस्ते को मेरा #प्रणाम है । #सात सौ श्लोकरूपी फूलों से सुवासित यह गुलदस्ता #करोड़ों लोगों के हाथ गया, फिर भी मुरझाया नहीं ।’
इतना ही नहीं #महात्मा थोरो भी #गीता के ज्ञान से प्रभावित हो के अपना सब कुछ छोड़कर अरण्यवास करते हुए एकांत में कुटिया बनाकर #जीवन्मुक्ति का आनंद लेते थे ।
श्रीमद्भगवद्गीता के विषय में संतों एवं विद्वानों के विचार!!
श्रीमद्भगवद्गीता भारत के विभिन्न मतों को मिलानेवाली रज्जु तथा राष्ट्रीय-जीवन की अमूल्य संपत्ति है । भारतवर्ष का राष्ट्रीय धर्मग्रंथ बनने के लिए जिन-जिन विशेष गुणों की आवश्यकता है, वे सब श्रीमद्भगवद्गीता में मिलते हैं । इसमें केवल उपयुक्त बातें ही नहीं हैं अपितु यह भावी विश्वधर्म का सर्वोपरि धर्मग्रंथ है । भारतवर्ष के प्रकाशपूर्ण अतीत का यह महादान मनुष्य-जाति के और भी उज्जवल भविष्य का निर्माता है ।  - मि. एफ.टी. बू्रक्स 
श्रीमद्भगवद्गीता योग का एक ऐसा ग्रंथ है जो किसी जाति, वर्ण अथवा धर्मविशेष के लिए ही नहीं अपितु सारी मानव-जाति के लिए उपयोगी है ।
- डॉ. मुहम्मद हाफिज सैयद
किसी भी जाति को उन्नति के शिखर पर चढ़ाने के लिए गीता का उपदेश अद्वितीय है ।
- वॉरेन हेस्टिंग्स (भारत का वायसराय)
भारतवर्ष के धार्मिक-साहित्य का कोई अन्य ग्रंथ भगवद्गीता के समान स्थान प्राप्त करने योग्य नहीं प्रतीत होता ।         - डॉ. रिचार्ड गार्वे
भगवद्गीता में दर्शनशास्त्र और धर्म की धाराएँ साथ-साथ प्रवाहित होकर एक-दूसरे के साथ मिल जाती हैं । भगवद्गीता और भारत के प्रति हम लोग (जर्मन लोग) आकर्षित होते रहते हैं ।
- डॉ. एल्जे. ल्युडर्स (जर्मनी)
सत् क्या है इसका विवेचन भगवद्गीता में बहुत अच्छी तरह से किया गया है । विश्व में यह ग्रंथ-रत्न अप्रतिम है, अद्भुत है ।
- लॉर्ड रोनाल्डशे
बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है । उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है । मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीताग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है । उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरपूर लगे इसीलिए गीताजी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन रही हैं । वह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अमूल्य खजाना है ।           
- एफ. एच. मोलेम (इंग्लैन्ड)
गीताग्रंथ अद्भुत है । #विश्व की 578 #भाषाओं में #गीता का अनुवाद हो चुका है । हर भाषा में कई चिन्तकों, विद्वानों एवं भक्तों ने मीमांसाएँ की हैं और अभी भी हो रही हैं, होती रहेंगी क्योंकि  इस  ग्रंथ  में सभी देश,  जाति, पंथ  के  सभी  मनुष्यों  के  कल्याण  की अलौकिक सामग्री भरी हुई है ।
अतः हम सबको #गीताज्ञान में अवगाहन करना चाहिए। #भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकास करानेवाला यह #गीताग्रंथ विश्व में अद्वितीय है ।                                                           - ब्रह्मनिष्ठ स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज
विरागी जिसकी इच्छा करते हैं, संत जिसका प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं और पूर्ण ब्रह्मज्ञानी जिसमें ‘अहमेव ब्रह्मास्मि’ की भावना रखकर रमण करते हैं, #भक्त जिसका #श्रवण करते हैं, जिसकी त्रिभुवन में सबसे पहले वन्दना होती है, उसे लोग ‘#भगवद्गीता’ कहते हैं ।                                                                                -संत #ज्ञानेश्वरजी
गीता के ज्ञानामृत के पान से मनुष्य के जीवन में साहस, समता, सरलता, स्नेह, शांति, धर्म आदि दैवी गुण सहज ही विकसित हो उठते हैं । अधर्म, अन्याय एवं शोषकों का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है । निर्भयता आदि दैवी गुणों को #विकसित करनेवाला, भोग और #मोक्ष दोनों ही प्रदान करनेवाला यह ग्रंथ पूरे विश्व में अद्वितीय है ।
- संत आसारामजी बापू
जिस मनुष्य ने श्रीमद्भगवद्गीता का थोड़ा भी अध्ययन किया हो, श्रीगंगाजल का एक बिन्दु भी पान किया हो अथवा भगवान श्रीविष्णु का सप्रेम पूजन किया हो, उसे यमराज नजर उठाकर देख भी नहीं सकते । अर्थात् वह संसार-बंधन से मुक्त होकर आत्यन्तिक आनन्द का अधिकारी हो जाता है ।                                                                            - जगद्गुरु श्री शंकराचार्यजी
(स्त्रोत्र :  संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित, ऋषि प्रसाद)

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