Sunday, December 3, 2017

हिंदुस्तान में अंग्रेज अत्याचारियों पर पहला बम फेंकनेवाले युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस



December 3, 2017 www.azaadbharat.org

खुदीराम बोसका जन्म

🚩हिंदुस्थानपर अत्याचारी सत्ता चलानेवाले ब्रिटिश साम्राज्यपर जिसने अलौकिक धैर्यसे पहला बम फेंका, शालेय जीवनमें ही ‘वंदे मातरम्’ के पवित्र मंत्रसे प्रभावित होकर जिसने स्वतंत्रताके युद्धमें स्वयंको झोंक दिया और मात्र 18 वें वर्षमें हाथमें ‘भगवद्गीता’ लेकर जिसने फांसीके फंदेको आलिंगन दिया, उस #क्रांतिवीर #खुदीराम बोसका जन्म 3 दिसंबर 1889 को #बंगालके #मिदनापुर जिलेके #बहुवैनी नामक गांवमें हुआ । उनके #पिताका नाम बाबू #त्रैलोक्यनाथ बोस तथा #मांका नाम #लक्ष्मीप्रियादेवी था ।

🚩राजद्रोहके आरोपसे निर्दोष छूटना
Khudiram Bose, the young revolutionary who throws the first bomb on British atrocities in India
🚩‘फरवरी 1906 में मिदनापुरमें एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी थी । यह प्रदर्शनी देखनेके लिए आसपासके प्रांतोंसे सैंकडों लोग आने लगे । बंगालके एक क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रककी प्रतियां खुदीरामने इस प्रदर्शनीमें बांटी । पुलिस सिपाही उन्हें पकडनेके लिए भागा । खुदीरामने इस सिपाहीके मुंहपर घूंसे मारे और शेष पत्रक बगलमें दबाकर वे उनके हाथोंसे छूटकर भाग गए । इस प्रकरणमें राजद्रोहके आरोपमें सरकारने उनपर अभियोग चलाया; परंतु खुदीराम उसमेंसे निर्दोष छूट गए ।’

🚩न्यायाधीश किंग्जफोर्डको मारनेके लिए चयन होना

🚩‘मिदनापुरमें ‘युगांतर’ इस क्रांतिकारकोंकी गुप्त संस्थाके माध्यमसे खुदीराम क्रांतिकार्यमें खींचे गए । 1905 सालमें लॉर्ड कर्जनने बंगालका विभाजन किया । इस विभाजनके विरोधमें आए अनेकों भारतीयोंको उस समयके कलकत्ताके मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने क्रूर दंड दिया । अन्य प्रकरणोंमें भी उसने क्रांतिकारियोंको बहुत कष्ट दिया था । इसी समय किंग्जफोर्डको पदोन्नति मिली और वह मुजफ्फरपुरमें सत्र न्यायाधीशके पदपर पदासीन हुआ । अंतमें ‘युगांतर’ समितिके एक गुप्त बैठकमें किंग्जफोर्डको ही मारना तय हुआ । इस हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन किया गया ।

🚩खुदीरामको एक बम और पिस्तौल दी गई । प्रफुल्लकुमारको भी एक पिस्तौल दी गई । मुजफ्फरपुरमें आनेपर इन दोनोंने किंग्जफोर्डके बंगलेकी निगरानी की । उन्होंने उसके चारपहिया तथा उसके घोडेका रंग देख लिया । खुदीराम तो उसके कार्यालयमें जाकर उसे भी ठीकसे देख आया ।

🚩30 अप्रैल 1908 को यह दोनों नियोजित कामके लिए बाहर निकले और किंग्जफोर्डके बंगलेके बाहर घोडागाडीसे उसके आनेकी राह देखने लगे । बंगलेकी निगरानीहेतु विद्यमान दो गुप्त अनुचरोंने उन्हें हटाया; परंतु उन्हें योग्य उत्तर देकरे वहीं रुक गए ।’

🚩हिंदुस्तानमें अंग्रेज अत्याचारियोंपर पहला बम फेंकनेका मान प्राप्त होना

🚩‘रात्रमें साडेआठ बजेके आसपास क्लबसे किंग्जफोर्डकी गाडीके समान दिखनेवाली गाडी आते हुए देखकर खुदीराम गाडीके पीछे भागने लगे । रास्तेपर बहुत ही अंधेरा था । गाडी किंग्जफोर्डके बंगलेके सामने आते ही उन्होंने दोनों हाथोंसे बम ऊपर उठाया और निशाना लगाकर अंधेरेमें ही आगेवाले चारपहियापर जोरसे फेंका । हिंदुस्थानके इस पहले बम विस्फोटकी आवाज उस रात तीन मील तक सुनाई दी और कुछ ही दिनोंमें उसकी आवाज इंग्लैंड, युरोपको भी सुनाई दी । खुदीराम ने किंग्जफोर्डकी गाडी समझकर बम फेंका था; परंतु उस दिन किंग्जफोर्ड थोडा विलंबसे क्लबसे बाहर आनेके कारण बच गया । दैवयोगसे गाडियां एक जैसी होनेके कारण दो यूरोपियन स्त्रियोंको अपने प्राण गंवाने पडे । रातोंरात खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही 24 मीलपर वैनी रेल्वे स्थानकतक नंगे पैर भागते हुए गए ।’

🚩धैर्यसे तथा आनंदित होकर फांसीपर चढना

🚩‘दूसरे दिन संदेह होनेपर प्रफुल्लकुमार चाकीको पुलिस पकडने गई, तब उन्होंने स्वयंपर गोली चलाकर प्राणार्पण किए । खुदीराम को पुलिसने गिरफ्तार किया । इस गिरफ्तारीका अंत निश्चित ही था । 11 अगस्त 1908 को भगवदगीता हाथमें लेकर खुदीराम धैर्यके साथ एवं आनंदी वृत्तिसे फांसी चढ गए ।

🚩किंग्जफोर्डने घबराकर नौकरी छोड दी और जिन क्रांतिकारियोंको उसने कष्ट दिया था उनके भयसे उसकी शीघ्र ही मौत हो गई । परंतु खुदीराम मरकर भी अमर हो गए |’

संदर्भ : श्री. संजय मुळ्ये, रत्नागिरी (दैनिक सनातन प्रभात, 2.12.2007 )

🚩खुदीराम बोसको ‘अत्याचारी’ संबोधनकर उनके स्मारकके उद्घाटन हेतु आनेके लिए नेहरूने नकार दिया

🚩‘क्रांतिवीर खुदीराम बोसका स्मारक बनानेकी योजना कानपुरके युवकोंने बनाई और प्रधानमंत्री नेहरूको उसका उद्घाटनके लिए बुलाया । खुदीराम बोसका बलिदान अनेक युवकोंके लिए स्फूर्र्तिदायी था । उनके पीछे असंख्य युवक इस स्वतंत्रतायज्ञमें आत्मार्पण करनेके लिए उद्युक्त हुए । इस एकेक क्रांतिकारियोंके त्यागको सीमा नहीं थी । नेहरूका क्रोध यह देखकर निरंकुश हो गया कि ‘खुदीराम बोस जैसे एक शस्त्राचारी युवकके स्मारकके लिए मेरे जैसे गांधीजीके वारिसको बुलानेका साहस इन युवकोंने किया !’ उन्होंने उन युवकोंको फटकारा और कहा, ‘‘अत्याचारी मार्गका जिसने आधार लिया, उसके स्मारकके उद्घाटनको मैं नहीं आऊंगा !’’

संदर्भ : ‘लाल किलेकी यादें’, लेखक : गोपाळ गोडसे (दैनिक सनातन प्रभात, 2.12.2007)

🚩देशको परतंत्रताकी बेडियोंसे मुक्त कराने हेतु अपने प्राणोंकी आहुति देनेवाले महान क्रांतिकारियोंको अत्याचारी कहना अर्थात् भारत मांसे विश्वासघात करना है । ऐसे ही देशद्रोही नेताओंके नियंत्रणमें आजभी हमारा देश है । इसी कारण देशमें अराजकता बढ रही है । देशकी बागडोर राष्ट्रभक्तोंके हाथों सौपना ही इसका पर्याय है ।

🚩आज बड़ी #विडंबना है कि भारत को लूटने वाले #अंग्रेजों का #इतिहास #पढ़ाया जाता है पर देश के लिए बलिदान देने वालों का इतिहास पढ़ाया नही जाता है।


🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt

🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

No comments:

Post a Comment