Tuesday, December 19, 2017

जमानत मिलने पर भी कैदी बाहर नही आ पा रहे है, निर्दोषों को नही मिल पा रहा है न्याय



December 19, 2017

हमारे देश में जो अंग्रेजो के बनाये कानून चल रहे है, उससे आम जनता बेहद दुःखी है, नेता, अभिनेता,पत्रकारों धनी को तो तुरन्त जमानत भी हासिल हो जाती है और कोर्ट में भी धक्के नही खाने पड़ते, लेकिन एक आम आदमी अपने गहने-मकान-प्रोपर्टी आदि बेचकर भी न्ययालय में न्याय पाने को तरसता रहता है, लेकिन सालों तक न्याय नही मिल पाता है, यहाँ तक कि उसको अपना पक्ष रखने के लिए जमानत तक नही दी जाती है और किसी गरीब व्यक्ति को जमानत मिल भी जाती है तो पैसे नही होने के कारण जेल से बाहर नही आ पा रहे हैं ।
Prisoners can not come out even after getting bail, innocent people are not able to get justice

गरीबी की वजह से मुचलका या जमानत राशि नहीं भर पाने के कारण जमानत के बावजूद भी सैकड़ों कैदी तिहाड़ जेल में बन्द हैं ।

गरीब कैदियों को जमानत मिलने पर भी जेल से बाहर नही आने के कारण अधिवक्ता अजय वर्मा की ओर से न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी उसमें देहली उच्च न्यायालय ने कहा कि हमें इस बात का बहुत दुख है कि, इस संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से तय कानून और वैधानिक प्रावधानों तथा विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद 253 विचाराधीन कैदी जमानत मिलने के बावजूद तिहाड़ जेल में बंद हैं।

उच्चतम न्यायालय ने निचली न्यायालयों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे मामलों में ज्यादा संवेदनशील और सतर्क रहें कि इन विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा क्यों नहीं किया जा सकता है ?

ऐसे तो केवल तिहाड़ जेल में ही नही देशभर की अनेक जेलों में ऐसे कैदी हैं कि जमानत मिलने पर भी जमानत राशि नही भरने के कारण बाहर नही आ पा रहे है ।

न्याय में देरी भी एक तरह का अन्याय

अभी हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि न्यायालयों को मुकदमों की सुनवाई टालने से बचना चाहिए। मुकदमों का अडजर्नमेंट तभी होना चाहिए, जब कोर्ट के पास कोई अन्य विकल्प ना हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय मिलने में देर होना भी एक तरह का अन्याय है। इस अन्याय से बचने के लिए तारीख पर तारीख लगाने की प्रवृत्ति को रोकना होगा। राष्ट्रपति ने कहा कि हमें ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे सभी को समय से न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो और सामान्य आदमी की भाषा में निर्णय देने की व्यवस्था हो। राष्ट्रपति ने न्यायपालिका को स्वतंत्र और निष्पक्ष रखने की वकालत की।

स्थानीय भाषा में सुनवाई होनी चाहिए

राष्ट्रपति ने कहा कि अदालतों को मुअक्किलों को जागरूक करने के लिए स्थानीय भाषा में कोर्ट में सुनवाई करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर अदालतों में होने वाले फैसलों की कॉपी स्थानीय भाषा में दी जाए तो इससे न्यायिक प्रक्रिया को समझने में भी मदद मिलेगी। राष्ट्रपति ने न्यायपालिका को सुझाव देते हुए कहा कि यदि स्थानीय भाषा में बहस करने का चलन जोर पकड़े तो सामान्य नागरिक भी अपने मामले की प्रगति को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। साथ ही निर्णयों और आदेशों की सत्यप्रतिलिपि का स्थानीय भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराने की व्यवस्था होनी चाहिए।

राष्ट्रपति ने आगे कहा कि पूरे देश के न्यायालयों में लगभग तीन करोड़ मामले लंबित हैं। इनमें से लगभग 40 लाख मामलें अकेले उच्च न्यायालयों में चल रहे हैं। 

क्यो देरी हो रही है न्याय मिलने में?

देश के कुछ हाईकोर्ट ऐसे हैं जो मुकदमों का फैसला करने में औसतन चार साल तक लगा रहे हैं। वहीं निचली अदालतों का हाल इससे भी दोगुना बुरा है। वहां मुकदमों का निपटारा होने में औसतन छह से साढ़े नौ साल तक लग रहे हैं। हाईकोर्ट के मामले में देश भर में सबसे बुरा प्रदर्शन राजस्थान, इलाहाबाद, कर्नाटक और कलकत्ता हाईकोर्ट का रहा है। निचली अदालतों में गुजरात सबसे फिसड्डी है, जिसके बाद उड़ीसा, झारखंड, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र आदि आते हैं।

अदालती कामकाज पर शोध करने वाली बेंगलुरु की एक संस्था के अध्ययन से पता चला है कि हर दिन न्यायालयों में जजों का 55 फ़ीसदी समय प्रशासनिक कार्यों में ख़र्च होता है। 45 फीसद वक्त में वह मुकदमे की कार्यवाही आगे बढ़ाते हैं।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के अनुसार, जज अपना 55 फ़ीसदी समय समन जारी करने, भविष्य की सुनवाई की तारीख़ें तय करने और प्रशासन के निर्णय में ख़र्च करते हैं न कि सुनवाई जैसे न्यायिक कार्यों में। 

दक्ष संस्था ने देश की 91 हज़ार अदालती सुनवाई के आधार पर यह अध्ययन किया है। साथ ही इसके ज़रिए बताया गया है कि प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त कर मामलों को निपटाने में तेज़ी आ सकती है।

सबूत दाखिल होने और गवाही पूरी होने के बाद भी फैसला सुनाने में साल भर का वक्त लग रहा है। मुकदमों में एड़ियां घिसते लोगों की परेशानी को इन आंकड़ों से समझना लगभग नामुमकिन है। 

जांचकर्ता से लेकर जज और वकील तक कचहरी में अपनी मर्जी से आते हैं, जबकि मुकदमों से जुड़े लोग अक्सर अपनी जीविका छोड़कर आते हैं।

वकील भी फीस ज्यादा मिले ऐसी लालच के कारण भी मुकदमा जल्दी नही निपटाते है। 

सरकार और न्यायालय को इस पर गंभीर विचार करना चाहिए आम व्यक्ति को शीघ्र न्याय मिले इसके लिए कदम आगे बढ़ाना चाहिए नही तो निर्दोष को न्याय देरी से मिलना भी अन्याय ही है ।

No comments:

Post a Comment