Thursday, January 18, 2018

12 लाख रुपये आयकर भरनेवाला, आयआयटी इंजीनियर नौकरी छोड़कर लेगा दीक्षा

January 18, 2018

भारत एक आध्यात्मिक देश है । आध्यात्मिक जगत की गहराइयों में पहुँचाने वाले ऋषि-मुनियों ने ऐसी खोजें की है कि आज का वैज्ञानिक कल्पना भी नही कर सकता, आज के कई वैज्ञानिक तो ऋषि-मुनियों की खोजी हुई खोजों को उनके साहित्य द्वारा पढ़कर खोज करते हैं और अपने नाम का लेबल लगा देते हैं, लेकिन ऋषि-मुनियों ने योग-साधना द्वारा कितनी खोजें की, उस पर प्रकाश नहीं डालते ।
Income tax refund of 12 lakh rupees, IIT engineer will quit job

आज की युवापीढ़ी भी पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित है और अशांत, खिन्न , चिंतामय जीवन व्यतीत कर रही है । अपनी चिंताओं को मिटाने के लिये शराब का सहारा लेते हैं, व्यसन करते हैं, क्लबों में जाना अपनी शान समझते हैं, सुखी रहने के लिए पार्टियो में जाना, फिल्में देखना,व्यभिचार करना उनके जीवन का अंश बन गया है पर इससे आज तक किसी के दुःख दूर नही हुए बल्कि इससे वैमनस्यता बढ़ी है, आत्महत्याएं बढ़ी हैं, खिन्नता बढ़ी है ।

जीवन जीने की सही शैली तो हमें हमारे ऋषि मुनियों से ही मिली है इसलिए भारत अपने ऋषि मुनियों के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है । वास्तविक सुख का स्त्रोत तो भीतर ही है । अगर आज का मानव अपने सनातन सत्य की ओर, अपनी वास्तविकता की ओर वापिस आ जाये तो जिस सुख के लिए वो दर-दर की ठोकरें खा रहा है वो तो उसके घर की चीज हो जाये ।

इतिहास में कई उदाहरण मिलते है जो नश्वर जगत का आकर्षण छोड़कर शाश्वत परमात्मा का सुख पाने के लिए निकल पड़े और उन्होंने ही फिर जगत का कल्याण किया है । आज भी सच्चे संत इस धरा पर हैं जिनके मार्गदर्शन में लाखों नहीं करोड़ों का जीवन सदमार्ग पर चल पड़ा है ।

राजा भर्तृहरि की तरह बाहर का सुख तुच्छ समझकर आंतरिक सुख की अनुभूति करने के लिए इंजीनियर संकेत पारेख ने दीक्षा लेने का निर्णय लिया है ।

आयआयटी मुंबई से पढाई कर चुके 29 वर्ष के केमिकल इंजीनियर संकेत पारेख की जिंदगी अपने सीनियर से ऑनलाइन चैट करने के बाद पूरी तरह से बदल चुकी है । उनके पास बहुत अच्छी नौकरी थी और वह यूएस से पोस्ट ग्रेजुएशन करने की योजना बना रहे थे । परंतु चैटिंग के बाद अब वह उन 16 लोगों में शामिल हैं जोकि बोरीवली (मुंबई) में 22 जनवरी को दीक्षा ले रहे हैं ! ये सभी जैन आचार्य युगभूषण सुरीजी से शिक्षा ले रहे थे ।

पारेख वैष्णव परिवार से संबंध रखते हैं परंतु वो आयआयटी में अपने सीनियर भाविक शाह की वजह से जैन धर्म की आेर रुझान रखने लगे । भाविक ने 2013 में दीक्षा ली थी । पारेख ने कहा कि वह पहले नास्तिक थे और वह अपने करियर के लिए बहुत गंभीर थे परंतु उन्होंने जब से दीक्षा लेने का मन बनाया है तब से वह शांति अनुभव कर रहे हैं !

पारेख ने बताया कि मैं भाविक के साथ चैटिंग कर रहा था जोकि कनाडा में यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा में 2010 में इंटर्नशिप कर रहे थे । उस समय मैं फाइनल ईयर में था, यह सामान्य चैटिंग थी, मुझे नहीं पता था कि आत्मा के ज्ञान के विषय में कैसे बात करनी है !

यह पहली बार था जब मैं इस विषय के बारे में सोच रहा था । मैं इसमें गहराई से उतरता गया और जैन धर्म के प्रति पढना शुरू किया । उन्होंने बताया कि अब मैंने सारे गैजेट्स का प्रयोग करना छोड दिया है । अब वो कंप्यूटर का प्रयोग भी नहीं करते, जिससे वो चैटिंग किया करते थे ।

पारेख ने अपनी पगार के बारे में नहीं बताया हालांकि उन्होंने कहा कि वह 12 लाख रुपये हर साल इनकम टैक्स भर रहे थे । पारेख ने बताया कि उनके पिता की कुछ वर्ष पहले मृत्यु हो चुकी है । इसलिए उन्होंने अपनी मां और बडी बहन को बताया कि वह दीक्षा लेना चाहते हैं । उन्होंने अपनी मां से कहा कि बस यही एक माध्यम है जिससे वो खुश रह सकते हैं । हालांकि शुरुआत में मां को मनाना मुश्किल था !

जिनका आध्यात्मिक स्तर अच्छा है, वही एेसा विचार कर सकते है । अध्यात्म यह कृती का शास्त्र है । अध्यात्म में बताए गए सूत्र जब तक कृती में नहीं लाए जाते, तब तक उनका महत्त्व मनुष्य को पता नहीं चलता । एेसा होते हुए भी तथाकथित बुद्धीजीवी एवं आधुनिकतावादी जिनका अध्यात्म के विषयमें कोर्इ अभ्यास नहीं है, वह इसपर टीका करते है ।

इतिहास में कई उदाहरण मिलते है जो नश्वर जगत का आकर्षण छोड़कर श्वासत परमात्मा का सुख पाने के लिए निकल पड़े और उन्होंने ही फिर जगत का कल्याण किया है ।

ऐसे ही एक थी मल्लिकायनाथ

जैन धर्म में कुल 24 तीर्थांकर हो चुके हैं। उनमें एक राजकन्या भी तीर्थंकर हो गयी, जिसका नाम था मल्लियनाथ। राजकुमारी मल्लिका इतनी खूबसूरत थी कि कई राजकुमार व राजा उसके साथ ब्याह रचाना चाहते थे लेकिन वह किसी को पसंद नहीं करती थी आखिरकार उन राजकुमारों व राजाओं ने आपस में एकजुट मल्लिका के पिता को किसी युद्ध में हराकर उसका अपहरण करने की योजना बनायी।

मल्लिका को इस बात का पता चल गया। उसने राजकुमारों व राजाओं को कहलवाया कि 'आप लोग मुझ पर कुर्बान हैं तो मैं भी आप सब पर कुर्बान हूँ। तिथि निश्चित करिये। आप लोग आकर बातचीत करें। मैं आप सबको अपना सौंदर्य दे दूँगी।"

इधर मल्लिका ने अपने जैसी ही एक सुन्दर मूर्ति बनवायी एवं निश्चित की गयी तिथि से दो-चार दिन पहले से वह अपना भोजन उसमें डाल देती थी। जिस महल में राजकुमारों व राजाओं को मुलाकात देनी थी, उसी में एक ओर वह मूर्ति रखवा दी गयी। निश्चित तिथि पर सारे राजा व राजकुमार आ गये। मूर्ति इतनी हूबहू थी कि उसकी ओर देखकर राजकुमार विचार ही कर रहे थे कि 'अब बोलेगी... अब बोलेगी....' इतने में मल्लिका स्वयं आयी तो सारे राजा व राजकुमार उसे देखकर दंग रह गये कि 'वास्तविक मल्लिका हमारे सामने बैठी है तो यह कौन है ?"

मल्लिका बोलीः "यह प्रतिमा है। मुझे यही विश्वास था कि आप सब इसको ही सच्ची मानेंगे और सचमुच में मैंने इसमें सच्चाई छुपाकर रखी है। आपको जो सौंदर्य चाहिए वह मैंने इसमें छुपाकर रखा है।" यह कहकर ज्यों ही मूर्ति का ढक्कन खोला गया, त्यों ही सारा कक्ष दुर्गन्ध से भर गया। पिछले चार-पाँच दिन से जो भोजन उसमें डाला गया था, उसके सड़ जाने से ऐसी भयंकर बदबू निकल रही थी कि सब 'छि...छि...छि...' कर उठे।

तब मल्लिका ने वहाँ आये हुए राजाओं व राजकुमारों को सम्बोधित करते हुए कहाः "भाइयो ! जिस अन्न, जल, दूध, फल, सब्जी इत्यादि को खाकर यह शरीर सुन्दर दिखता है, मैंने वे ही खाद्य-सामग्रियाँ चार-पाँच दिनों से इसमें डाल रखी थीं। अब ये सड़कर दुर्गन्ध पैदा कर रही हैं। दुर्गन्ध पैदा करने वाली इन खाद्यान्नों से बनी हुई चमड़ी पर आप इतने फिदा हो रहे हो तो इस अन्न को रक्त बनाकर सौंदर्य देने वाला वह आत्मा कितना सुंदर होगा।"

मल्लिका की इस सारगर्भित बातों का राजा एवं राजकुमारों पर गहरा असर हुआ और उन्होंने कामविकार से अपना पिण्ड छुड़ाने का संकल्प किया। उधर मल्लिका संत-शरण में पहुँच गयी और उनके मार्गदर्शन से अपने आत्मा को पाकर मल्लियनाथ तीर्थंकर बन गयी। आज भी मल्लियनाथ जैन धर्म के प्रसिद्ध उन्नीसवें तीर्थंकर के रूप में सम्मानित होकर पूजी जा रही हैं।

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