Thursday, January 4, 2018

जातिवाद, छुआछूत नहीं है हिन्दू धर्म का हिस्सा, यह देश को तोड़ने का भयंकर षडयंत्र

January 4, 2018

आज देश में जातिवाद को लेकर भयंकर राजनीति चल रही है जो देश के लिए बहुत खतरनाक है, अंग्रेजो की नीति "फूट डालो, राज करो" आज फिर से प्रत्यक्ष देखने को मिल रही है । आज भी जिस तरह से देश में माहौल बनाया जा रहा है उससे तो लग रहा है कि देश विरोधी ताकतों द्वारा एक स्क्रिप्ट तैयार की गई है और उनके द्वारा बड़ी फंडिग हो रही है जिसके जरिये कुछ लोगों को मोहरा बनाकर जैसे कि उमर खालिद, जिग्नेश मेवाणी आदि लोग नेता रूप में खड़े हो गये और देश में जातिवाद फैलाकर एक दूसरे में जहर भर रहे हैं ।
Racism is not untouchable, part of Hindu religion; This is a terrible conspiracy to break the country.

पहले हरियाणा में जाट लोगों को भड़काया और पूरा हरियाणा जलाया  फिर गुजरात में पटेलों को भड़काया और दंगे करवाये, अभी महाराष्ट्र में भी ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों के बीच फूट डलवा कर महाराष्ट्र में आग लगा रहे हैं ।

हिन्दू धर्म में जातिवाद नही है, वर्ण व्यवस्था है न कि छोटी जाति बड़ी जाति ।
सबको अपना अपना काम दिया हुआ है जैसे कि ब्राह्मणों को वेद-पाठ कर्मकांड आदि का, क्षत्रियों को देश की रक्षा का, वैश्यों को व्यापक करने का और शूद्रों को पशुपालन एवं चमड़े और मांस का  कारोबार और बच्चों के जन्म के समय प्रसव कराने का कार्य।

आजादी के बाद से राजनैतिक स्वार्थों के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत शूद्रों को दलित नाम दिया गया और उनके उत्थान के नाम पर जो खेल खेला गया, उससे सबसे ज्यादा दलित प्रभावित हुए। दलितों से उनका पारंपरिक आय का स्रोत छीना गया।

प्राचीन भारत जो वर्ण व्यवस्था थी उसमें हर जाति के पास रोजगार के साधन उपलब्ध थे। कुम्हार बर्तन बनाता, लुहार लोहे का काम करता, हजाम हजामत का काम करता, अहीर पशुपालन करते, तेली तेल का धंधा करता, वगैरह... कोई भी जाति दूसरी जाति का काम छीनने का प्रयास नही करती थी।

इस व्यवस्था के अनुसार दलितों ( शुद्र) का जो मुख्य पेशा था वह था- पशुपालन, मांस व्यवसाय , चमड़ा व्यवसाय और सबसे बड़ा बच्चों के जन्म के समय प्रसव कराने का कार्य।

एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत दलितों को यह एहसास दिलाया गया कि आप जो काम कर रहे हैं वह गन्दा है, घृणित है। फलस्वरूप वे अपने पेशे से दूर होते गए और उनसे ये सारे धंधे छीन लिए गए। पर दलितों के छोड़ देने से क्या ये काम बन्द हो गए?

आज तनिक नजर उठा कर देखिये, चमड़ा उद्योग और मांस उद्योग का वार्षिक टर्न ओवर लाखों करोड़ों का नहीं बल्कि अरबों-खबरों का है। आज यह व्यवसाय किस जाति के हाथ में है?

आपकी हमारी आँखों के सामने दलितों से उनकी आमदनी का स्रोत छीन कर एक अन्य समुदाय के झोले में डाल दिया गया और हम यह चाल समझ नही पाये।

उत्तर प्रदेश में जय भीम जय मीम के धोखेबाज नारे और महाराष्ट्र में दलितों को फंसाकर उन्हें अन्य हिन्दुओ के विरुद्ध भड़काने वालों की मंशा साफ है, वे आपको सौ टुकड़े में तोड़ कर दलितों के सारे हक लूटना चाहते हैं। तनिक ध्यान से देखिये, दलितवाद का झूठा खेल अधिकांश वे ही लोग क्यों खेल रहे हैं जिन्होंने दलितों के पेशे पर डकैती डाली है।

विदेशी पैसे से पेट भर कर समाज में आग लगाने का प्रयास करने वाले इन चाइना परस्त लोगों के धोखे में न आइये। ये देश जितना चन्द्रगुप्त का है उतना ही चन्द्रगुप्त मौर्य का। जितना महाराणा उदयसिंह का है उतना ही पन्ना धाय का। जितना बाबू कुंवर सिंह का है उतना ही बिरसा भगवान का।

भारतीय इतिहास का पहला सम्राट "चन्द्रगुप्त मौर्य" जाति से शूद्र था, और उसे एक सामान्य बालक से सत्ता का शिखर पुरुष बनाने वाला चाणक्य एक ब्राम्हण। सदियाँ गवाह हैं, भारत का इतिहास मौर्य वंश के बिना बिल्कुल अधूरा है।

धर्म की गलत व्याखाओं का दौर प्राचीन समय से ही जारी है। ऋषि वेद व्यास ब्राह्मण नहीं थे, जिन्होंने पुराणों की रचना की। तब से ही वेद हाशिये पर धकेले जाने लगे और समाज में जातियों की शुरुआत होने लगी। क्या हम शिव को ब्राह्मण कहें? विष्णु कौन से समाज से थे और ब्रह्मा की कौन सी जाति थी? क्या हम कालीका माता और भैरव को दलित समाज का मानकर पूजना छोड़ दें?

आज के शब्दों का इस्तेमाल करें तो ये लोग दलित थे-ऋषि कवास इलूसू, ऋषि वत्स, ऋषि काकसिवत, महर्षि वेद व्यास, महर्षि महिदास अत्रैय, महर्षि वाल्मीकि, हनुमानजी के गुरु मातंग ऋषि आदि ऐसे महान वेदज्ञ हुए हैं जिन्हें आज की जातिवादी व्यवस्था दलित वर्ग का मान सकती है। ऐसे हजारों नाम गिनाएं जा सकते हैं जो सभी आज के दृष्टिकोण से दलित थे। वेद को रचने वाले, स्मृतियों को लिखने वाले और पुराणों को गढ़ने वाले ब्राह्मण नहीं थे।

अक्सर जातिवाद, छुआछूत और स्वर्ण, दलित वर्ग के मुद्दे को लेकर धर्मशास्त्रों को भी दोषी ठहराया जाता है, लेकिन यह बिल्कुल ही असत्य है। इस मुद्दे पर धर्म शस्त्रों में क्या लिखा है यह जानना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस मुद्दे को लेकर हिन्दू सनातन धर्म को बहुत बदनाम किया गया है और किया जा रहा है।

पहली बात यह कि जातिवाद प्रत्येक धर्म, समाज और देश में है। हर धर्म का व्यक्ति अपने ही धर्म के लोगों को ऊंचा या नीचा मानता है। क्यों? यही जानना जरूरी है। लोगों की टिप्पणियां, बहस या गुस्सा उनकी अधूरी जानकारी पर आधारित होता है। कुछ लोग जातिवाद की राजनीति करना चाहते हैं इसलिए वह जातिवाद और छुआछूत को और बढ़ावा देकर समाज में दीवार खड़ी करते हैं और ऐसा भारत में ही नहीं दूसरे देशों में भी होता रहा है।

दलितों को 'दलित' नाम हिन्दू धर्म ने नहीं दिया, इससे पहले 'हरिजन' नाम भी हिन्दू धर्म के किसी शास्त्र ने नहीं दिया। इसी तरह इससे पूर्व के जो भी नाम थे वह हिन्दू धर्म ने नहीं दिए। आज जो नाम दिए गए हैं वह पिछले 70 वर्ष की राजनीति की उपज है और इससे पहले जो नाम दिए गए थे वह पिछले 900 साल की गुलामी की उपज है।

बहुत से ऐसे ब्राह्मण हैं जो आज दलित हैं, मुसलमान है, ईसाई हैं या अब वह बौद्ध हैं। बहुत से ऐसे दलित हैं जो आज ब्राह्मण समाज का हिस्सा हैं। यहां ऊंची जाति के लोगों को स्वर्ण कहा जाने लगा हैं। यह स्वर्ण नाम भी हिन्दू धर्म ने नहीं दिया।

भारत ने 900 साल मुगल और अंग्रेजों की गुलामी में बहुत कुछ खोया है खासकर उसने अपना मूल धर्म और संस्कृति खो दी है। खो दिए हैं देश के कई हिस्से। यह जो भ्रांतियां फैली है और यह जो समाज में कुरीतियों का जन्म हो चला है इसमें गुलाम जिंदगी का योगदान है। जिन लोगों के अधीन भारतीय थे उन लोगों ने भारतीयों में फूट डालने के हर संभव प्रयास किए और इसमें वह सफल भी हुए।

अब यह भी जानना जरूरी है कि हिन्दू धर्म के शास्त्र कौन से हैं। क्योंकि कुछ लोग उन शास्त्रों का हवाला देते हैं जो असल में हिन्दू शास्त्र है ही नहीं। हिन्दुओं का धर्मग्रंथ मात्र वेद है, वेदों का सार उपनिषद है जिसे वेदांत कहते हैं और उपनिषदों का सार गीता है। इसके अलावा जिस भी ग्रंथ का नाम लिया जाता है वह हिन्दू धर्मग्रंथ नहीं है।

मनुस्मृति, पुराण, रामायण और महाभारत यह हिन्दुओं के धर्म ग्रंथ नहीं है। ये ग्रन्थ सभी मनुष्यों के लिए बनाये गए हैं । इन ग्रंथों में हिन्दुओं का इतिहास दर्ज है, लेकिन कुछ लोग इन ग्रंथों में से संस्कृत के कुछ श्लोक निकालकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि ऊंच-नीच की बातें तो इन धर्मग्रंथों में ही लिखी है। असल में यह काल और परिस्थिति के अनुसार बदलते समाज का चित्रण है। दूसरी बात कि इस बात की क्या गारंटी कि उक्त ग्रंथों में जानबूझकर संशोधन नहीं किया गया होगा। हमारे अंग्रेज भाई और बाद के कम्युनिस्ट भाइयों के हाथ में ही तो था भारत के सभी तरह के साहित्य को समाज के सामने प्रस्तुत करना तब स्वाभाविक रूप से तोड़ मरोड़कर बर्बाद कर दिया।

कर्म का विभाजन-वेद या स्मृति में श्रमिकों को चार वर्गो- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र-में विभक्त किया गया है, जो मनुष्यों की स्वाभाविक प्रकृति पर आधारित है। यह विभक्तिकरण कतई जन्म पर आधारित नहीं है। आज बहुत से ब्राह्मण व्यापार कर रहे हैं उन्हें ब्राह्मण कहना गलत हैं। ऐसे कई क्षत्रिय और दलित हैं जो आज धर्म-कर्म का कार्य करते हैं तब उन्हें कैसे क्षत्रिय या दलित मान लें? लेकिन पूर्व में हमारे देश में परंपरागत कार्य करने वालों का एक समाज विकसित होता गया, जिसने स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को निकृष्ट मानने की भूल की है तो उसमें हिन्दू धर्म का कोई दोष नहीं है। यदि आप धर्म की गलत व्याख्या कर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं तो उसमें धर्म का दोष नहीं है।

प्राचीन काल में ब्राह्मणत्व या क्षत्रियत्व को वैसे ही अपने प्रयास से प्राप्त किया जाता था, जैसे कि आज वर्तमान में एमए, एमबीबीएस आदि की डिग्री प्राप्त करते हैं। जन्म के आधार पर एक पत्रकार के पुत्र को पत्रकार, इंजीनियर के पुत्र को इंजीनियर, डॉक्टर के पुत्र को डॉक्टर या एक आईएएस, आईपीएस अधिकारी के पुत्र को आईएएस अधिकारी नहीं कहा जा सकता है, जब तक कि वह आईएएस की परीक्षा नहीं दे देता। ऐसा ही उस काल में गुरुकुल से जो जैसी भी शिक्षा लेकर निकलता था उसे उस तरह की पदवी दी जाती थी।

इस तरह मिला जाति को बढ़ावा-दो तरह के लोग होते हैं- अगड़े और पिछड़े। यह मामला उसी तरह है जिस तरह की दो तरह के क्षेत्र होते हैं विकसित और अविकसित। पिछड़े क्षेत्रों में ब्राह्मण भी उतना ही पिछड़ा था जितना की दलित या अन्य वर्ग, धर्म या समाज का व्यक्ति। पिछड़ों को बराबरी पर लाने के लिए संविधान में प्रारंभ में 10 वर्ष के लिए आरक्षण देने का कानून बनाया गया, लेकिन 10 वर्ष में भारत की राजनीति बदल गई। सेवा पर आधारित राजनीति पूर्णत: वोट पर आधारित राजनीति बन गई।

आज लगता है राष्ट्र विरोधी ताकतें भारत को फिर से तोड़ने का सपना देख रही है उसके लिए भारत में कुछ देश विरोधी लोगों को भारी फंडिग दी जा रही है जिसमें मीडिया भी शामिल है अतः आप जातिवाद में न उलझिए, दलित शब्द हिन्दुओं में था ही नही बल्कि जो वर्णव्यवस्था है उसमें सभी को अपने अपने काम दिए है वो पूर्ण रूप से करे बाकि देशविरोधी और मीडिया के बहकाने में आकर देश को खंड-खंड करने का पाप न करें ।

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