Monday, February 19, 2018

हिन्दुओं, सावधान! मीडिया आपके खिलाफ चलाने वाली है कैम्पियन, आप क्या कर सकते है पढ़े

February 19, 2018

सभी जानते हैं कि अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया हिन्दुओं व उनके त्यौहारों के खिलाफ है, हिन्दुओं के खिलाफ मतलब केवल एक हिन्दू के खिलाफ नही बल्कि उनकी जहां-जहां आस्था है उसी केंद्र बिंदु को तोड़ने के लिए विदेशी ताकतों के इशारे पर काम कर रही है ।

विदेशी फंडेड मीडिया हाउस का टारगेट मुख्यरूप से हिन्दू देवी-देवता, हिन्दू त्यौहार, हिन्दू साधु-संत, वैदिक गुरुकुलों, मन्दिर, आश्रम आदि आदि हैं ।
Hindus, be careful! The media is going to run against you,
the champion, what you can read

आपको बता दें कि अभी होली आने वाली है हर बार की तरह इस बार भी मीडिया में 24 घंटे डिबेट चलने की संभावना है कि होली दहन लकड़ियों से करने पर वातावरण प्रदूषित होगा, धुलेंडी खेलने पर पानी का बिगाड़ होगा आदि ।

 हमारे ऋषि-मुनियों ने जो भी त्यौहार बनाये उनके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छुपे मिले । 

होली दहन के पीछे का वैज्ञानिक कारण :  होली के दिनों में ऋतु परिवर्तन होता है तो शरीर में कफ पिघलकर जठराग्नि में आता है जिसके कारण अनेक बीमारियां होती है उससे बचने के लिए होली दहन की तपन से कफ जल्दी पिघल कर नष्ट हो जाता है और दूसरे दिन कूद-फांद कर धुलेंडी खेलने से कफ निकल जाता है जिसके कारण अनेक भयंकर बीमारियों से रक्षा होती है ।

प्राचीनकाल में होली का दहन गाय के गोबर के कण्डों से किया जाता था जिसमें से ऑक्सीजन निकलता था और धुलेंडी पलाश (केसूड़े) के फूलों के रंग से खेली जाती थी जिससे आने वाले दिनों में गर्मी के कारण होने वाले रोगों से बचाव हो जाता था ।

आजकल जिन लकड़ियों से होली दहन किया जाता है वैसे नही करना चाहिए उसके बदले गाय के गोबर के कण्डों से करना चाहिए ।

गोबर से कण्डों से होली जलाने के फायदे

एक गाय करीब रोज 10 किलो गोबर देती है। 10..
 किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं।

एक कंडे की कीमत 10 रुपए रख सकते हैं। इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिल सकते है । यदि किसी एक शहर में होली पर 20 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 2 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं। औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के 13 लाख रुपए तक आ जाएंगे। लकड़ी की तुलना में लोगों को कंडे सस्ते भी पड़ेंगे। 

केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते है तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के गोबर के कण्डों से होली जलाने पर गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है, जिससे गौहत्या कम हो सकती है, कंडे बनाने वाले गरीबों को रोजी-रोटी मिलेगी, और वतावरण में शुद्धि होने से हर व्यक्ति स्वस्थ्य रहेगा ।

पलाश रंग से धुलेंडी खेलने के फायदे

पलाश के फूलों से होली खेलने की परम्परा का फायदा बताते हुए हिन्दू संत आशारामजी बापू कहते हैं कि ‘‘पलाश कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है। 

रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है । 

इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले #आदिवासियों को #रोजी-रोटी मिल जाती है ।
पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है । 

तो आओ मनाएं ऐसा त्यौहार जिससे महके घर आंगन और स्वस्थ रहे परिवार..

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