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Sunday, December 20, 2020

क्रिसमस मनाने वाले हिंदुस्तानी जरा इसको भी जान लीजिए

20 दिसंबर 2020


क्रिसमस भारत का त्यौहार नहीं है बल्कि धर्मांतरण कराने वाले ईसाई मिशनरियों का है फिर भी कुछ ना समज लोग क्रिसमस मनाते है, क्रिसमस मनाने से पहले जान ले कि 20 दिसंबर से 27 दिसंबर तक क्या हुआ था, और हमें क्या करना चाहिए।




भारत पर मुगल साम्राज्य था। मुग़ल शासक औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था और धर्मांध होकर इस्लाम स्वीकार कराने के लिए उसने हिन्दुओं को अनेक प्रकार के कष्ट दिये। वह सम्पूर्ण भारत को इस्लाम का अनुयायी बनाना चाहता था उसके आदेशों पर अनेकों स्थानों पर मंदिरों को तोडकर मस्जिदें बनायी गयीं , हिन्दुओं पर नाना प्रकार के कर लगाये गये , कोई भी हिन्दू शस्त्र धारण नहीं कर सकता था , घोड़े पर सवारी करना भी हिन्दुओं के लिए वर्जित था। औरंगजेब भारतीय संस्कृति तथा धर्म को जड़मूल से समाप्त कर देना चाहता था।  हिन्दुओं में आपसी कलह के कारण जुल्मों का विरोध नहीं हो रहा था। इन्हीं जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई दशम गुरू गोबिन्द सिंह जी ने , जिन्होंने निर्बल हो चुके हिन्दुओं में नया उत्साह और जागृति पैदा करने का मन बना लिया। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए गुरू गोबिन्द सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की।

खालसा पंथ से बौखलाये सरहिंद के सूबेदार वजीर खान और पहाड़ी दोगले हिन्दू राजे एकजुट हो गए और 1704 में गुरू गोबिन्द सिंह जी पर आक्रमण कर दिया। मुगलों ने पहाड़ी नरेशों की सहायता से आनंदपुर के किले को चारों ओर से घेर लिया जहाँ गुरु गोविन्दसिंह जी मौजूद थे, पर मुगल सेना अनेक नरेशों की सहायता से आनंदपुर के किले को चारों ओर से घेर लिया जहाँ गुरु गोविन्दसिंह जी मौजूद थे , पर मुगल सेना अनेक प्रयत्नों के बाद भी किले पर विजय पाने में असफल रही। सिखों ने बड़ी दिलेरी से इनका मुकाबला किया और सात महीने तक आनन्दपुर के किले पर कब्जा नहीं होने दिया हताश होकर औरंगजेब ने गुरुजी को संदेश भेजा और कुरान की कसम खाकर गुरू जी से किला खाली करने के लिए विनती की और कहा कि यदि गुरुगोविन्द सिंह आनंदपुर का किला छोडकर चले जाते हैं तो उनसे युद्ध नहीं किया जायेगा।

गुरुजी को औरंगजेब के कथन पर विश्वास नहीं था, पर फिर भी सिखों से सलाह कर गुरु जी घोडे से सिख - सैनिकों के साथ 20 दिसम्बर 1704 की रात को किला खाली कर बाहर निकले और रोपड़ की और कूच कर गए। जब इस बात का पता मुगलों को लगा तो उन्होंने सारी कसमें तोड़ डाली और गुरू जी पर हमला कर दिया। लड़ते - लड़ते सिख सिरसा नदी पार कर गए और चमकौर की गढ़ी में गुरू जी और उनके दो बड़े साहिबजादों ने मोर्चा संभाला। ये युद्ध अपने आप में खास है क्योंकि 80 हजार मुगलों से केवल 40 सिखों ने मुकाबला किया था। जब सिखों का गोला बारूद खत्म हो गया तो गुरू गोबिन्द सिंह जी ने पांच पांच सिखों का जत्था बनाकर उन्हें मैदाने जंग में भेजा। सिख सैनिक बहुत कम संख्या में थे , फिर भी उन्होंने मुगलों से डटकर मुकाबला किया और मुगल - सेना के हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इस लड़ाई में गुरू जी से इजाजत लेकर बड़े साहिबजादे भी शामिल हो गए। लड़ते लड़ते वो सिरसा नदी पार कर गए और वीरता के साथ लडते हुए 18 वर्षीय अजीतसिंह और 15 वर्षीय जुझारसिंह वीरगति को प्राप्त हो गए।


आनंदपुर छोडते समय ही गुरु गोबिंदसिंह जी का परिवार बिखर गया था। गुरुजी के दोनों छोटे पुत्र जोरावरसिंह तथा फतेहसिंह अपनी दादी माता गुजरी के साथ आनंदपुर छोडकर आगे बढे। जंगलों, पहाडों को पार करते हुए वे एक नगर में पहुंचे, जहाँ कम्मो नामक पानी ढोने वाले एक गरीब मजदूर ने गुरुपुत्रों व माता गुजरी की प्रेमपूर्वक सेवा की। इन सभी के साथ में गंगू नामक एक ब्राम्हण, जो कि गुरु गोबिंदसिंह के पास 22 वर्षों से रसोइए का काम कर रहा था, वो भी आया हुआ था। उसने रात में माता जी की सोने की मोहरों वाली गठरी चोरी कर ली। सुबह जब माता जी ने गठरी के बारे में पूछा तो वो न सिर्फ आग बबूला ही हुआ बल्कि उसने धन के लालच में गुरुमाता व बालकों से विश्वासघात किया और एक कमरे में बाहर से दरवाजा बंद कर उन्हें कैद कर लिया तथा मुगल सैनिकों को इसकी सूचना दे दी। मुगलों ने तुरंत आकर गुरुमाता तथा गुरु पुत्रों को पकड़ कर कारावास में डाल दिया। कारावास में रात भर माता गुजरी बालकों को सिख गुरुओं के त्याग तथा बलिदान की कथाएं सुनाती रहीं। दोनों बालकों ने दादी को आश्वासन दिया कि वे अपने पिता के नाम को ऊँचा करेंगे और किसी भी कीमत पर अपना धर्म नहीं छोडेंगे।

बच्चों को बोला तुम अपना धर्म त्यागकर इस्लाम कबूलकर लो।1 " दोनों बालक एक साथ बोल उठे – ' हमें अपना धर्म प्राणों से भी प्यारा है। हम , उसे अंतिम सांस तक नहीं छोड़ सकते।'  दोंनो बच्चों को जिंदा दीवार में चुन लिया, दोनों बच्चों ने अपने देश-धर्म के लिए वीरगति प्राप्त किया।

गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 दिसम्बर से 27 दिसम्बर के बीच अपने 4 बेटे देश-धर्म की खातिर वीरगति प्राप्त हुए थे।

★20 दिसम्बर को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।

★21 व 22 दिसंबर को गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहिबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण जो कभी गुरु घर का रसोइया था उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।

चमकौर की जंग शुरू हुई और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह अन्य साथियों सहित देश-धर्म की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।

★23 दिसंबर को गुरु साहिब की माता श्री गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे गंगू ब्राह्मण के द्वारा गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों गिरफ्तार करवा दिया गया और गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।

★24 दिसंबर को तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।

★25 और 26 दिसंबर को छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।

★27 दिसंबर को साहिबजादा जोरावर सिंह उम्र महज 8 वर्ष और साहिबजादा फतेह सिंह उम्र महज 6 वर्ष को तमाम जुल्म उपरांत जिंदा दीवार में चिनने उपरांत जिबह (गला रेत) कर शहीद किया गया और खबर सुनते ही माता गुजर कौर ने अपने साँस त्याग दिए।

अब निर्णय आप करो कि भारतवासीयों का धर्मांतरण कराने वाले ईसाई मिशनरियों का त्यौहार क्रिसमस मनाना चाहिए कि हमारे गुरु गोविंद सिंह के परिवार के शाहिद दिवस मनाना चाहिए जो देश वे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण भी दे दिया, आप देश व धर्म की रक्षा के लिए प्राण नहीं दे सकते हैं तो कम से कम धर्मांतरण का धंधा करने वालों का त्यौहार मनाना और बच्चों को उनके वस्त्र और टोपी पहनाना तो छोड़ ही सकते हैं।

मनाना है तो 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाओ उसदिन गीता जयंती भी है तो गीता माता का पूजन करना चाहिए।

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Friday, December 4, 2020

NGT का दोहरा मापदंड : दीपावली पर प्रतिबंध, क्रिसमस पर पटाखे पर छूट

04 दिसंबर 2020


हिंदुस्तान में ही हिंदुओं का दूसरा दर्जा रखा हुआ है, कोई भी हिंदू त्यौहार आये तो उस पर सवाल उठाया जाता है जबकि किसी अन्य समुदाय का त्योहार हो तो तुरंत छूट मिल जाती है, दूसरी तरफ जहाँ अधिकारों की बात आती है वहाँ पर भी सरकारी सुविधाओं पर जितना हक अल्पसंख्यकों का है उतना बहुसंख्यक हिंदुओं को नही मिलता है। विश्व मे भारत ही एक ऐसा देश है जो बहुसंख्यकों को दूसरा दर्जा दिया है।




आपको बता दें कि देश में कोरोना की स्थिति को देखते हुए एनजीटी ने पटाखों पर लगे बैन को अनिश्चितकाल तक के लिए बढ़ा दिया है। एनजीटी ने साफ तौर पर कह दिया है कि दिल्ली-एनसीआर समेत देश के उन सभी हिस्सों में पटाखों पर बैन बरकरार रहेगा जहाँ पर एयर क्वालिटी ख़राब या खतरनाक स्तर पर है। साथ ही एनजीटी ने कहा है कि क्रिसमस और न्यू ईयर के मद्देनजर देश के उन इलाकों में जहाँ एयर क्वालिटी मॉडरेट स्तर पर है, वहाँ पटाखे रात को 11:55 बजे से 12.30 तक यानी 35 मिनट के लिए चलाने की अनुमित होगी।

बता दें कि एनजीटी द्वारा पटाखों पर लगे बैन को आगे बढ़ाने के बाद अब सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी समारोह या शादी में पटाखों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके अलावा इसकी खरीद-फरोख्त पर लगी रोक भी बरकरार रहेगी।

पिछले महीने दीवाली से पहले एनजीटी ने 9 नवंबर को पटाखों के खरीद-फरोख्त और स्टोरेज पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। एनजीटी की तरफ से यह प्रतिबंध 30 नवंबर तक के लिए लगाया गया था, लेकिन अब एनजीटी ने पाया कि दिल्ली एनसीआर में कोरोना की तीसरी लहर तेज है, इसलिए यह प्रतिबंध आगे भी जारी रहेगा।

दिल्ली में दिवाली से ठीक पहले दिल्ली सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया था। दिल्ली में पटाखों को 9 नवंबर से 30 नवंबर तक पूरी तरह से बैन कर दिया गया। ग्रीन क्रैकर्स की बिक्री पर भी रोक लगा दी गई। कहा गया कि दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए इस तरह की पाबंदी लगाई गई।

केजरीवाल सरकार ने पटाखों को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए। दिल्ली सरकार में पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इसकी जानकारी देते हुए बताया था कि पटाखे जलाने और पटाखे बेचने वालों पर ₹1 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

गोपाल राय ने कहा कि पटाखे बेचने या फोड़ने वाले लोगों पर वायु प्रदूषण (नियंत्रण) अधिनियम (1981) के तहत 1 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। गोपाल राय ने बताया कि आरोपित के खिलाफ एयर एक्ट के तहत केस बनाया जाएगा, जिसमें 1 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। अब एनजीटी ने क्रिसमस और न्यू ईयर के अवसर पर रात के 11:55 बजे से 12.30 तक पटाखे चलाने की अनुमति दे दी है।

बीजेपी नेता मेजर सुरेंद्र पुनिया ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है, “शाबाश NGT NGT क्रिसमस/नईसे साल पर 11:50PM से 12:30 AM के बीच में पटाखे चला सकते हैं” क्योंकि उससे प्रदूषण नहीं होगा! दीवाली पर इसी NGT के आदेश पर पटाखे चलाने के जुर्म में 850 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। मी लॉर्ड,आपको इस वैज्ञानिक आविष्कार के लिए नोबेल पुरस्कार क्यों ना मिले?

वहीं एक अन्य सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, अब पटाखे जलाने से प्रदूषण नहीं फैलता? केवल दीपावली पर ही प्रदूषण फैलता है? अब कोविड-19 वायरस का संक्रमण खत्म हो गया है? या कानून का दुरुपयोग हो रहा है सिर्फ हिन्दू के त्यौहार को प्रतिबंधित करने के लिए?

ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है की किसी भी हिंदू त्यौहार आते ही वामपंथी, सेक्युलर, तथाकथित बुद्धजीवी, मीडिया आदि विरोध में खड़े हो जाते हैं पर अन्य समुदायों के लोगो के लिए छूट देने की मांग करते हैं, ये अंग्रेजों वाली नीति है हिंदुओं को संगठित होकर इसको खत्म कर देना चाहिए जब सेक्युलर देश बोला जाता है तो सभी को समानता का हक भी मिलना चाहिए।

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Sunday, December 25, 2016

आज 25 दिसंबर दुनिया भर में क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन ने मचाई धूम...!!

आज 25 दिसंबर दुनिया भर में क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन ने मचाई धूम...!!

दुनिया के आज सबसे ज्यादा देशों में 25 दिसंबर निमित्त क्रिसमस डे की जगह तुलसी पूजन दिवस मनाया गया ।

आपको बता दें कि केवल हिन्दू ही नही मुस्लिम, ईसाई, फारसी लोगों ने भी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाया ।
Today-Tulsi-pujan-diwas-took-place-of-christmas-on-twitter

2014 से 25 दिसंबर को तुलसी पूजन संत आसारामजी बापू की प्रेरणा से उनके करोड़ो अनुयायियों द्वारा जगह-जगह पर मनाना प्रारंभ किया गया । उसके बाद तो 2015 से इस अभियान ने विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया और अब 2016 में तो देश-विदेश में अनेक जगहों पर हिन्दू मुस्लिम और अन्य धर्मों की जनता भी मना रही है ।

आज संत आसारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि उनके अनुयायियों द्वारा विश्वभर में विद्यालयों, महाविद्यालयों और जाहिर जगहों पर एवं घर-घर तुलसी पूजन मना रहे हैं ।

नीचे दी गई लिंक पर आप देख सकते हैं कि किस प्रकार देश-विदेश के अनगिणत लोग तुलसी पूजन द्वारा लाभान्वित हो रहे हैं ।

केवल जमीनी स्तर पर ही नही सोशल मीडिया पर भी कल से तुलसी पूजन की धूम मची है ।

आज क्रिसमस डे था लेकिन Twitter पर भी टॉप ट्रेंड में चल रहा था #25Dec_तुलसी_पूजन_दिवस

 आज बापू आसारामजी के अनुयायियों द्वारा देश भर में तुलसी पूजन किया गया। 

उनकी ट्वीट्स द्वारा देखने को मिला कि तुलसी पूजन दिवस निमित्त देशभर के स्कूल, कॉलेज, गाँवो, शहरों में तुलसी पूजन करवाया गया तथा कीर्तन यात्राओं के साथ तुलसी जी का वितरण भी किया गया ।


आज ही नही कल भी ट्वीटर पर टॉप में ट्रेंड चल रहा था #25Dec_TulsiPujanDiwas

और आज भी यही हुआ ट्वीटर पर टॉप 3 में ट्रेंड दिख रहा रहा था । 
#25Dec_तुलसी_पूजन_दिवस



आइये कुछ ट्वीट्स द्वारा जाने लोगों के मनोभाव...

1. नारायण सोनी लिखते हैं कि सुख, समृद्धि व आरोग्य प्रदायिनी तुलसी का स्थान भारतीय संस्कृति में पवित्र व महत्वपूर्ण है। #25Dec_तुलसी_पूजन_दिवस


2.सुमित जी लिखते हैं कि सुखी, स्वस्थ व सम्मानित जीवन जीने के कई प्रयासों में Asaram Bapu Ji का एक ये भी प्रयास : #25Dec_तुलसी_पूजन_दिवस । https://twitter.com/SSAMANIYA/status/812949476688195584


3.सत्यशील रॉय का कहना है कि किसी भी रोग से पीड़ित व्यक्ति के कक्ष में तुलसी का पौधा रखने से वह शीघ्र रोग मुक्त होता है #25Dec_TulsiPujanDiwas https://twitter.com/SatyashilRai/status/812955025471401984

4. राज जी लिखते हैं कि मृतक के मस्तक, छाती पर तुलसी जी की सुखी लकड़ी अगर रख दी जाये तो उसकी सद्गति होती है। #25Dec_तुलसी_पूजन_दिवस

5. पी.सूर्यवंशी जी लिखते हैं कि
संत Asaram Bapu Ji की समाज के हित की अनोखी एवम् दिव्य पहल #25Dec_तुलसी_पूजन_दिवस

इस तरीके से अनेकों ट्वीट आज हमें देखने को मिली जिसके जरिये लोग बता रहे थे कि अब हम 25 दिसंबर को क्रिसमस नही बल्कि तुलसी पूजन दिवस मनाएंगे ।

बापू आसारामजी के अनुयायियों के साथ-साथ अनेक हिन्दू संगठन और देश-विदेश के लोग भी मना रहे थे तुलसी पूजन का त्यौहार!!

आपको बता दें कि डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल जी और सुदर्शन न्यूज के सुरेश चव्हाणके और भी कई बड़ी हस्तियां आसारामजी बापू को जेल में मिलकर आये थे और उन्होंने बताया कि बापूजी ने देश हित के अनेक कार्य किये है और ईसाई धर्मांतरण को रोक लगाई इसलिए उनको षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है।

बापू आसारामजी के अनुयायियों ने अपने गुरुदेव से प्रेरणा पाकर हमेशा विदेशी अंधानुकरण का विरोध किया है और हिन्दू संस्कृति का समर्थन किया है । 

आज भले बापू आसारामजी अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र के तहत जेल में हों लेकिन आज भी उनके द्वारा प्रेरित किये गए सेवाकार्यों की सुवास समाज में देखने को मिलती है।
 जैसे 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन, गौ-पूजन, दीपावली पर गरीबों में भंडारा, गीता जयंती निमित्त रैलियां, हरिनाम संकीर्तन यात्रायें आदि आदि ।

उनके अनुयायी हमेशा इन सभी दैविकार्यों में आगे ही रहते हैं पर मीडिया में आज तक हमें बापू आसारामजी के समर्थन में कुछ देखने सुनने को नहीं मिला।

आखिर क्यों मीडिया हमेशा हमारे हिन्दू संतों के लिए गलत और अनर्गल खबरें समाज में प्रसारित करती है ?


आखिर क्यों मीडिया की नजर में सिर्फ हिन्दू संत ही दोषित हैं कोई मौलवी और पादरी नहीं ?

 क्या इन संतों का यही कसूर है कि इन्होंने हिन्दू संस्कृति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया..???

स्वयं विचारें !!!