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Thursday, March 9, 2017

इंदौर के युवाओं ने गौरक्षा के लिए शानदार पहल की

इंदौर के युवाओं ने गौरक्षा के लिए शानदार पहल की 

दो दिन के बाद इंदौर (मध्य प्रदेश) में छोटी-बड़ी 20 हजार से ज्यादा होलियां जलेंगी। इस दिन यदि लकड़ियों के बजाय गोबर के कंडों की होली जलाई जाए तो शहर की 150 गौशालाओं में पल रही लगभग 50 हजार गाएं अपना सालभर का खर्च खुद निकाल लेंगी।

इस बार गाय के गोबर के कंडो से जलेगी होली ...

कुछ तथाकथित पर्यावरणविदों द्वारा होली में लकड़ी बचाने, धुएं से पर्यावरण खराब होने और कई दिनों तक जलती लकड़ी के ताप से सड़कें खराब होने जैसी दलीलें लंबे समय से दी जा रही हैं लेकिन इंदौर के 50 व्यापारियों और कारोबारियों ने मिलकर ऐसी पहल की है, जिसमें सीख बाद में, फायदे का सौदा पहले है। दो साल के ट्रायल में नफा-नुकसान को कसौटी पर परखने के बाद अब वे घर, बाजार, मंडी, दफ्तरों में जाकर इसका गणित समझा रहे हैं। मध्यप्रदेश गौपालन एवं पशुसंवर्धन बोर्ड ने भी इसे तकनीकी रूप से सही ठहराया है।

इंदौर के युवाओं ने गौरक्षा के लिए शानदार पहल की


कंडे और होली का बहीखाता

-इंदौर की 30 किमी की सीमा में छोटी-बड़ी 150 गौशालाएं हैं, जिनमें लगभग 50 हजार गाएं हैं। जबकि प्रदेश में अनुदान प्राप्त 664 गौशालाएं हैं। इनमें लगभग 1 लाख 20 हजार गाएं रहती हैं।

- एक गाय रोज 10 किलो गोबर देती है। इस तरह इंदौर सहित प्रदेशभर में रोज 12 लाख किलो गोबर निकलता है। 10 किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं।

- होली पर इंदौर में 15-20 लाख कंडों की जरूरत होती है, जिसके पर्याप्त इंतजाम हैं।

गोबर से गाय अपना खर्च कैसे निकालेगी? 

अभियान से शुरू से जुड़े कारोबारी मनोज तिवारी, राजेश गुप्ता और गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि एक कंडे की कीमत 10 रुपए है। इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिलेंगे। यदि शहर में होली पर 20 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 2 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं। औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के 13 लाख रुपए तक आ जाएंगे। लकड़ी की तुलना में लोगों को कंडे सस्ते भी पड़ेंगे। गौ सेवा से जुड़े अखिल भारतीय गो सेवा प्रमुख शंकरलाल जी का कहना है कि यह अभियान कोलकाता के कुछ हिस्सों में शुरू हुआ था, लेकिन बड़े पैमाने पर हो तो इसका व्यापक असर देखा जा सकता है।

100 रुपए खर्च और मिलते हैं 2 रुपए

पशु कल्याण के लिए सरकार ने 1962 में 28 सदस्यीय एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (#एडब्ल्यूबीआई) का गठन किया था जिसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जरिये फंड भेजा जाता है। 2011-12 में #एडब्ल्यूबीआई के लिए 21.7  करोड़ रुपये का आबंटन हुआ था, 2015-16 में यह राशि घटकर 7.8 करोड़ हो गई है। देश भर में चार हजार से अधिक #गौशालाओं में साढ़े तीन करोड़ गौवंश हैं। एडब्ल्यूबीआई के #चेयरमैन आर.एम. खर्ब के मुताबिक, 'एक गाय पर रोज का खर्चा कम से कम सौ रुपये है, मगर #केंद्र_सरकार से जो अनुदान राशि मिल रही है, उससे गौशालाओं में संरक्षित एक गाय के हिस्से में सिर्फ दो रुपये आते हैं।'

 यह है गाय पर राजनीति करने वाली सरकार का असली चेहरा!

इसके ठीक उलट सरकार ने देश भर के #कसाईघरों को आधुनिक बनाने के वास्ते 2002 में दसवीं पंचवर्षीय योजना के तहत 5 हजार 137 करोड़ की राशि का आबंटन किया था, ताकि बीफ  एक्सपोर्ट में हम पीछे न रह जाएं। देश का दुर्भाग्य है कि कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हम हजारों करोड़ खा रहे हैं, मगर पशुओं के संरक्षण के वास्ते #सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।

मोदी_सरकार आने के बाद पहला बजट जो पास किया गया उसमें कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की जाती है ।

2014 में  4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी #भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ #एक्सपोर्ट कर #दुनिया में नंबर वन बन गया। 

गौशालाओं को बनायें स्वाबलंबी !!

कंडे की होली और गोबर खाद खरीदकर समाज में गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है। इसी प्रकार इंदौर के राजबाड़ा की सरकारी होली में भी इस बार सिर्फ एक बड़ी लकड़ी होगी । होलकरवंश से जुड़े उदयराव होलकर ने भी इस पर सहमति दे दी है। सरकारी होली में अभी तक आधी लकड़ी और आधे कंडे का इस्तेमाल होता था, लेकिन मान्यता के अनुसार होली जलने के बाद शहरवासी सरकारी होली की आग ले जाते हैं, इसलिए इस बार बीच में केवल एक बड़ी लकड़ी रखेंगे। केवल यही एक लकड़ी जलती रहेगी। शेष होली के लिए कंडों का इस्तेमाल होगा। केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । एक गाय रोज 10 किलो गोबर देती है। इसकी राख से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते है तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गौमाता हमारे लिए कितनी उपयोगी है जानने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें ।


भारत में प्रतिदिन लगभग 50 हजार गायें बड़ी बेरहमी से काटी जा रही हैं । 1947 में गोवंश की जहाँ 60 नस्लें थी,वहीं आज उनकी संख्या घटकर 33 ही रह गयी है । हमारी अर्थव्यवस्था का आधार गाय है और जब तक यह बात हमारी समझ में नहीं आयेगी तबतक भारत की गरीबी मिटनेवाली नहीं है । गोमांस विक्रय जैसे जघन्य पाप के द्वारा दरिद्रता हटेगी नहीं बल्कि बढ़ती चली जायेगी । गौवध को रोकें और गोपालन कर गोमूत्ररूपी विषरहित कीटनाशक तथा दुग्ध का प्रयोग करें । गोवंश का संवर्धन कर देश को मजबूत करें । भारतीय गायों के मूत्र में पूरी दुनियाँ की गायों से ज्यादा रोगप्रतिरोधक शक्ति है । ब्राजील और मेक्सिको में भारत के गोवंशों को आदर्श माना जाता है । वे भारतीय गोवंश का आयात कर इनसे लाभान्वित हो रहे हैं । 

आपने देखा कि केवल गौ माता के गोबर से ही गौ-पालन हो जाता है और गाय के दूध एवं मूत्र  में सुवर्णक्षार पाएं गये हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य में चार चांद लगा देते हैं ।

अगर परम उपयोगी गौ-माता का पालन सरकार नही करती तो आप ही करें ,औरों को भी प्रेरित करें एवं  इंदौर के युवाओं की तरह आप भी अपने गाँव-नगर में कंडो से ही होली जलाएं ।

Wednesday, December 14, 2016

मुम्बई कत्लखाने को आधुनिकीकरण करने के लिए सरकार ने किया 1,066 करोड़ निवेश!!

मुम्बई कत्लखाने को आधुनिकीकरण करने के लिए सरकार ने किया 1,066 करोड़ निवेश!!


मुम्बई स्थित "देवनार" देश के सबसे बड़े कत्लखानों में से एक है ।


भूमि डूब, पुअर मीट चिलिंग और अवैज्ञानिक ढंग से ऐनिमल वेस्ट निपटान को देखते हुए पर्यावरणविद् और PETA संस्था ने आपत्ति जताई है।

BMC (बृहन्मुंबई महानगर पालिका ) ने देवनार को नया रूप देने के लिए 1,066 करोड़ निवेश करेगी ।
Azaad Bharat  1,066 Crore Investment in the modernization of Slaughter Houses

BMC अधिकारी ने कहा है कि "नगर निकाय के नेताओं के संयोग से  दोनार को इंटर्नेशनल स्टैण्डर्ड से लैस से किया जायेगा और नगरपालिका ने 1,066 करोड़ की मंजूरी दे दी है। इसके सुधार का उत्तरदायित्व BMC ने अपने हाथों में लिया है।

दोनार को 1971 में स्थापित किया गया था और यह आधे शहर के मीट की मांग की  पूर्ति करता है।

इसे सोलर एनर्जी यूटिलाइजेशन, वर्षा जल संचयन, हाई एन्ड मशीनरी के द्वारा जानवरों को रैंप द्वारा लोड और अनलोड करने जैसी सुविधाएं दी जायँगी । नगर-निगम के अधिकारियों को  डिस्प्नेसरी और ऑफिसर्स को रहने के लिए जगह अलॉट की जायेगी।

इसके साथ साथ बकर-ईद जैसे त्याहारों पर बाजार लगाये जायेंगे तथा खरीददारों के लिए रेस्ट रूम भी होंगे ।

ऐनिमल वेस्ट का निपटान बेहतर तरीके से किया जायेगा, इस कत्लखाने में 6000 जानवरों को एक यूनिट में निपटाने की क्षमता होंगी।

BMC अधिकारी ने कहा है इसका रूपांतरण कुछ भागों में किया जायेगा जिससे खरीददारों को कोई दिक्कत न आये ।


अब एक सवाल उठता है कि पहले की सरकार तो निर्दोष पशु और गौ-हत्या करने में मानती थी पर वर्तमान सरकार जो गौ-हत्या बन्द करवाने और हिंदुत्ववादी के नाम से चुनकर आई है ।
वो भी आज कत्लखानों में पैसा निवेश करती है लेकिन गौ-शाला के लिए एक रुपया भी निवेश क्यों नही होता है???

भाजपा सरकार द्वारा मुंबई देवनार कत्लखाने को और भी क्रियान्वित करने के लिये टेंडर निकाला है जिसमें हररोज लगभग 20 हजार गोवंश का वध किया जायेगा ।

 जिन चमड़ा कम्पनियों को गेंद, पर्स, जूते आदि सामान बनाने के लिये जो चमड़ा चाहिये वो अधिकतर गोमाता के चमड़े का प्रयोग किया जाता है ।

वर्तमान सरकार आने के बाद पहला बजट पास किया गया जिसमें कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की जाती है ।

2014 में  4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ एक्सपोर्ट कर दुनिया में नंबर वन बन गया। 

गाय के नाम पर वोट पाने वाली सरकार गाय के लिए क्या कर ही है ये उपर्युक्त आँकड़े से स्पष्ट है । 

भारत में प्रतिदिन लगभग 50 हजार से अधिक गायें बड़ी बेरहमी से काटी जा रही हैं । 1947 में गोवंश की जहाँ 60 नस्लें थी,वहीं आज उनकी संख्या घटकर 33 ही रह गयी है । हमारी अर्थव्यवस्था का आधार गाय है और जब तक यह बात हमारी समझ में नहीं आयेगी तबतक भारत की गरीबी मिटनेवाली नहीं है । गोमांस विक्रय जैसे जघन्य पाप के द्वारा दरिद्रता हटेगी नहीं बल्कि बढ़ती चली जायेगी । 

गौवध को रोकें और गोपालन कर गोमूत्ररूपी विषरहित कीटनाशक तथा गौ दुग्ध का प्रयोग करें । गोवंश का संवर्धन कर देश को मजबूत करें । 
गौमाता हमारे लिए कितनी उपयोगी है। लिंक पर पढ़े

देश का दुर्भाग्य है कि कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हजारों करोड़ खर्च किये जा रहे हैं, मगर गायों के संरक्षण के वास्ते सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।

कसाईघरों के मालिकों को देखो तो बड़े ठाठ से जीते हैं और बड़े-बड़े महलों में रहते हैं वहीं दूसरी ओर गौ-पालक को देखो तो गरीब और छोटे घरों में रहते है आखिर ऐसा क्यों???

क्योंकि सरकार गौ-शालाओं में पैसा निवेश करने की जगह पर कसाईघरों में कर रही है ।

अभी जनता की एक ही मांग है कि सरकार जल्द से जल्द कत्लखानों का बजट बंद करके गौ-शालाओं में बजट को निवेश करें जिससे हमारी पवित्र गौ-माता की रक्षा हो और फिर से भारत विश्वगुरु पद पर आसीन हो ।