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Monday, March 27, 2017

भारतीय संस्कृति का चैत्री नूतन वर्ष - 28 मार्च

भारतीय संस्कृति का चैत्री नूतन वर्ष - 28 मार्च

चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि ।
– ब्रम्हपुराण

अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया । इसी दिन से सत्ययुग का आरंभ हुआ । यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार कालगणना भी #आरंभ हुई । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है । यह दिन महाराष्ट्र में ‘गुडीपडवा’ के नाम से भी मनाया जाता है । गुडी अर्थात् ध्वजा । पाडवा शब्द में से ‘पाड’ अर्थात पूर्ण; एवं ‘वा’ अर्थात वृद्धिंगत करना, परिपूर्ण करना । इस प्रकार पाडवा इस शब्द का अर्थ है, परिपूर्णता ।
Gudi Padwa - Chetichand

गुड़ी (बाँस की ध्वजा) खड़ी करके उस पर वस्त्र, ताम्र- कलश, नीम की पत्तेदार टहनियाँ तथा शर्करा से बने हार चढाये जाते हैं।

गुड़ी उतारने के बाद उस शर्करा के साथ नीम की पत्तियों का भी प्रसाद के रूप में सेवन किया जाता है, जो जीवन में (विशेषकर वसंत ऋतु में) मधुर रस के साथ कड़वे रस की भी आवश्यकता को दर्शाता है।

वर्षारंभके दिन सगुण #ब्रह्मलोक से प्रजापति, ब्रह्मा एवं सरस्वतीदेवी इनकी सूक्ष्मतम तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । 

चैत्र #शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रजापति तरंगें सबसे अधिक मात्रा में पृथ्वी पर आती हैं । इस दिन सत्त्वगुण अत्यधिक मात्रा में #पृथ्वी पर आता है । यह दिन वर्ष के अन्य दिनों की तुलना में सर्वाधिक सात्त्विक होता है ।

प्रजापति #ब्रह्मा द्वारा तरंगे पृथ्वी पर आने से वनस्पति के अंकुरने की भूमि की क्षमता में वृद्धि होती है । तो बुद्धि प्रगल्भ बनती है । कुओं-तालाबों में नए झरने निकलते हैं ।

#चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन #धर्मलोक से धर्मशक्ति की तरंगें पृथ्वी पर अधिक मात्रा में आती हैं और पृथ्वी के पृष्ठभाग पर स्थित धर्मबिंदु के माध्यम से ग्रहण की जाती हैं । तत्पश्चात् आवश्यकता के अनुसार भूलोक के जीवों की दिशा में प्रक्षेपित की जाती हैं ।

इस दिन #भूलोक के वातावरण में रजकणों का प्रभाव अधिक मात्रा में होता है, इस कारण पृथ्वी के जीवों का #क्षात्रभाव भी जागृत रहता है । इस दिन वातावरण में विद्यमान अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव भी कम रहता है । इस कारण वातावरण अधिक #चैतन्यदायी रहता है ।
भारतीयों के लिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का दिन अत्यंत शुभ होता है । 

साढे तीन मुहूर्तों में से एक #मुहूर्त

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा, ऐसे साढे तीन मुहूर्त होते हैं । इन साढे तीन #मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण #शुभमुहूर्त ही होता है ।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, #वरुणावतार संत #झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु #अंगददेवजी का #जन्मदिवस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का जन्मदिवस, चैत्री नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा से जुड़कर और अधिक महान बन गयी।


चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रकृति सर्वत्र माधुर्य #बिखेरने लगती है।

भारतीय संस्कृति का यह नूतन वर्ष जीवन में नया उत्साह, नयी चेतना व नया आह्लाद जगाता है। वसंत #ऋतु का आगमन होने के साथ वातावरण समशीतोष्ण बन जाता है।

सुप्तावस्था में पड़े जड़-चेतन तत्त्व गतिमान हो जाते हैं । नदियों में #स्वच्छ जल का संचार हो जाता है। आकाश नीले रंग की गहराइयों में चमकने लगता है।

#सूर्य-रश्मियों की प्रखरता से खड़ी फसलें परिपक्व होने लगती हैं ।

किसान नववर्ष एवं नयी फसल के स्वागत में जुट जाते हैं। #पेड़-पौधे नव पल्लव एवं रंग-बिरंगे फूलों के साथ लहराने लगते हैं।

बौराये आम और कटहल नूतन संवत्सर के स्वागत में अपनी सुगन्ध बिखेरने लगते हैं । सुगन्धित वायु के #झकोरों से सारा वातावरण सुरभित हो उठता है ।

कोयल कूकने लगती हैं । चिड़ियाँ चहचहाने लगती हैं । इस सुहावने मौसम में #कृषिक्षेत्र सुंदर, #स्वर्णिम खेती से लहलहा उठता है ।

इस प्रकार #नूतन_वर्ष का प्रारम्भ आनंद-#उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता सुंदर भूमिका बना देती है । इस बाह्य #चैतन्यमय प्राकृतिक वातावरण का लाभ लेकर व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में भी उपवास द्वारा #शारीरिक #स्वास्थ्य-लाभ के साथ-साथ जागरण, नृत्य-कीर्तन आदि द्वारा भावनात्मक एवं आध्यात्मिक जागृति लाने हेतु नूतन वर्ष के प्रथम दिन से ही माँ आद्यशक्ति की उपासना का नवरात्रि महोत्सव शुरू हो जाता है ।

#नूतन वर्ष प्रारंभ की पावन वेला में हम सब एक-दूसरे को सत्संकल्प द्वारा पोषित करें कि ‘सूर्य का तेज, चंद्रमा का अमृत, माँ शारदा का ज्ञान, भगवान #शिवजी की #तपोनिष्ठा, माँ अम्बा का शत्रुदमन-सामर्थ्य व वात्सल्य, दधीचि ऋषि का त्याग, भगवान नारायण की समता, भगवान श्रीरामचंद्रजी की कर्तव्यनिष्ठा व मर्यादा, भगवान श्रीकृष्ण की नीति व #योग, #हनुमानजी का निःस्वार्थ सेवाभाव, नानकजी की #भगवन्नाम-निष्ठा, #पितामह भीष्म एवं महाराणा प्रताप की #प्रतिज्ञा, #गौमाता की सेवा तथा ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु का सत्संग-सान्निध्य व कृपावर्षा - यह सब आपको सुलभ हो ।

इस शुभ संकल्प द्वारा ‘#परस्परं #भावयन्तु की सद्भावना दृढ़ होगी और इसी से पारिवारिक व सामाजिक जीवन में #रामराज्य का अवतरण हो सकेगा, इस बात की ओर संकेत करता है यह ‘#राम राज्याभिषेक दिवस।

अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए बधाई-पत्र लिखें, दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहरायें, #सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें, #मंदिरों आदि में #शंखध्वनि करके नववर्ष का स्वागत करें  ।

Sunday, March 26, 2017

भारतीय चैत्री नूतनवर्ष कैसे मनाये ?

भारतीय चैत्री नूतनवर्ष कैसे मनाये ?

28 मार्च

भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है।
Azaad bharat , chetichand , gudipadwa

चैत्र नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती है । चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं।

अंग्रेजी नूतन वर्ष में शराब-कबाब, व्यसन, दुराचार करते हैं लेकिन भारतीय नूतन वर्ष संयम, हर्ष, उल्लास से मनाया जाता है । जिससे देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य, शांति से जन-समाज का जीवन मंगलमय हो जाता है ।


28 मार्च को नूतन वर्ष मनाना है, भारतीय संस्कृति की दिव्यता को घर-घर पहुँचाना है ।

हम भारतीय नूतन वर्ष व्यक्तिगतरूप और सामूहिक रूप से भी मना सकते हैं ।

कैसे मनाये ? 

1 - भारतीय नूतनवर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर #स्नान करें । संभव हो तो चर्मरोगों से बचने के लिए तिल का तेल लगाकर स्नान करें ।

2 - नवसंवत्सरारंभ पर पुरुष #धोती-कुर्ता / पजामा, तथा स्त्रियां नौ गज/छह गज की साडी पहनें ।

3 - मस्तक पर #तिलक करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।

4 - सूर्योदय के समय भगवान #सूर्यनारायण को #अर्घ्य देकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।

5 - सुबह सूर्योदय के समय #शंखध्वनि करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।

6 - हिन्दू नववर्षारंभदिन की शुभकामनाएं हस्तांदोलन (हैंडशेक) कर नहीं, नमस्कार कर स्वभाषा में दें ।

7 -  #भारतीय_नूतनवर्ष के प्रथम दिन ऋतु संबंधित रोगों से बचने के लिए नीम, कालीमिर्च, मिश्री या नमक से युक्त चटनी बनाकर खुद खाये और दूसरों को खिलायें ।

8 - #मठ-मंदिरों, #आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, #कॉलेज, सोसायटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर भगवा #ध्वजा फेराकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें  और बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भारतीय नववर्ष का स्वागत करें । हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है कि बंदनवार के नीचे से जो गुजरता है उसकी  ऋतु-परिवर्तन से होनेवाले संबंधित रोगों से रक्षा होती है ।  पहले राजा लोग अपनी प्रजाओं के साथ सामूहिक रूप से गुजरते थे ।

9 - भारतीय नूतन वर्ष के दिन सामूहिक #भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें ।

10 - भारतीय संस्कृति तथा गुरु-ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभीका जीवन उन्नत हो ।’ – इस प्रकार एक-दूसरे को #बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें । एस.एम.एस. भी भेजें ।

11 - अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए आप बधाई-पत्र भेज सकते हैं । #दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहरायें । 

12 - #ई-मेल, #ट्विटर, #फेसबुक, #व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया के माध्यम से भी बधाई देकर लोगों को प्रोत्साहित करें ।

13 - नूतन वर्ष से जुड़े #ऐतिहासिक प्रसंगों की झाकियाँ, फ्लैक्स भी लगाकर प्रचार कर सकते हैं ।

14  - सभी तरह के #राजनैतिक, #सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संगठनों से संपर्क करके सामूहिक रुप से सभा आदि के द्वारा भी नववर्ष का स्वागत कर सकते हैं ।

15 - नववर्ष संबंधित #पेम्पेलट #बाँटकर, न्यूज पेपरों में डालकर भी समाज तक संदेश पहुँचा सकते हैं ।

सभी भारतवासियों को प्रार्थना हैं कि रैली के द्वारा #कलेक्टर, #मुख्यमंत्री, #प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति को भी भारतीय नववर्ष को सरकार के द्वारा सामूहिकरूप में मनाने हेतु ज्ञापन दें और व्यक्तिगत रूप में भी पत्र लिखें । 


सैकड़ों वर्षों के विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी सनातन संस्कृति आज भी विश्व के लिए आदर्श बनी है । परंतु पश्चिमी कल्चर के प्रभाव से भारतीय पर्वों का विकृतिकरण होते देखा जा रहा है । भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के लिए भारतीय पर्वो को बड़ी विशालता से जरूर मनाए ।

‘नववर्षारंभ’ त्यौहार आनंद का, प्रण करें संस्कृतिरक्षा का !

यश, कीर्ति ,विजय, सुख समृद्धि हेतु घर के ऊपर झंडा या ध्वज पताका लगाये

हमारे शास्त्रो में झंडा या पताका लगाने का विधान है । #पताका यश, कीर्ति, विजय , घर में सुख समृद्धि , #शान्ति एवं पराक्रम का प्रतीक है। जिस जगह पताका या झंडा फहरता है उसके वेग से नकरात्मक उर्जा दूर चली जाती है ।

हिन्दू समाज में अगर सभी घरों में स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ #झंडा फहरेगा तो #हिन्दू समाज का यश, कीर्ति, विजय एवं पराक्रम दूर दूर तक फैलेगा ।


इसीलिए पहले के जमाने में जब युद्ध में या किसी अन्य कार्य में विजय प्राप्त होती थी तो #ध्वजा #फहराई जाती थी। ध्वजा का जहां सनातन धर्म में विशेष महत्व एवं आस्था रही है वहीं ध्वज की छत्र छाया में हो रहे पर्यावरण की शुद्धिकरण से सभी को लाभ मिलेगा।  


शास्त्रों में भी ध्वजारोहण का विशेष महत्व बताया गया है #झंडे या #पताका आयताकार या तिकोना होता है ।  जो भवनों, मंदिरों, आदि पर फहराया जाता है ।

घर पर ध्वजा लगाने से #नकारात्मक ऊर्जा का नाश तो होता ही है साथ ही घर को बुरी नजर भी नहीं लगती है। घर पर किसी भी प्रकार की बाहरी हवा नहीं लगती है। घर में भूत ,प्रेत आदि का प्रवेश नहीं होता । ध्वजा पर हनुमान जी का स्थान होता है, स्वयं #हनुमान जी सम्पूर्ण प्रकार से घर की , घर के सम्पूर्ण सदस्यों की रक्षा करते हैं । सभी प्रकार के #अनिष्टों से बचा जा सकता है ।

सभी #हिन्दू घरों में वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में झंडा या #ध्वजा जरूर लगाना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण यानि वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है। ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर की सुख व समृद्धि बढ़ती है।

अतः सभी हिन्दू घरों में #पीले, #सिंदूरी, #लाल या #केसरिये रंग के कपड़े पर #स्वास्तिक या #ॐ लगा हुआ #झंडा अवश्य लगाना चाहिए । मानसिक रूप से बीमार मंदिर के ऊपर लहराता हुआ झंडा देखे तो कई प्रकार के रोग का शमन हो जाता है ।

अतः भारतीय #नववर्ष मंगलवार 28 मार्च 2017 से पहले अपने घर पर ध्वज पताका अवश्य लगाए ।


आपको नव संवतसर की हार्दिक शुभकामनाएं.!!



Saturday, March 25, 2017

भारतीय चैत्री नूतनवर्ष की विशेषताएं - 28 मार्च

🚩भारतीय चैत्री नूतनवर्ष की विशेषताएं - 28 मार्च 

🚩 #चैत्र मास की #शुक्ल #प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है।
इस दिन #हिन्दू #नववर्ष का आरम्भ होता है। 'गुड़ी' का अर्थ '#विजय #पताका' होता है।

🚩 #इतिहास में इस प्रकार वर्णित है #चैत्री #वर्ष #प्रतिपदा...
nootan warsh vikram samwat - naya saal

 1- #ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की सृजन...

2- मर्यादा #पुरुषोत्तम #श्रीराम का राज्‍याभिषेक...

3- #माँ दुर्गा के #नवरात्र व्रत का शुभारम्भ...

4 प्रारम्‍भयुगाब्‍द (युधिष्‍ठिर संवत्) का आरम्‍भ..

5 उज्जैनी सम्राट #विक्रमादित्‍य द्वारा #विक्रमी संवत्प्रारम्‍भ..

6 शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्‍ट्रीय पंचांग)महर्षि #दयानन्द जी द्वारा आर्य समाज का स्‍थापना दिवस..

7 भगवान #झूलेलाल का अवतरण दिन..

8 #मत्स्यावतार दिवस..

9 - गुरु अंगद देव अवतरण दिवस..

10 - डॉ॰केशवराव बलिरामराव हेडगेवार जन्मदिन ।


🚩#नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती है...!!!

🚩इसी दिन #ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। 

🚩चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं।

🚩शुक्ल प्रतिपदा का दिन #चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। ‘उगादि‘ के दिन ही पंचांग तैयार होता है।

🚩महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से #सूर्यास्त तक...दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘#पंचांग ‘ की रचना की थी ।

🚩वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में #गुड़ीपड़वा की गिनती होती है।  इसी दिन भगवान #राम ने बाली के अत्याचारी शासन से  प्रजा को मुक्ति दिलाई थी।

🚩#नव वर्ष का प्रारंभ प्रतिपदा से ही क्यों...???

🚩#भारतीय #नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से #ग्रहों, #वारों, #मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है।

🚩आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है।

🚩#विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी #देवी, #देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है।

🚩हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थो में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है।

🚩प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम #चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं।

🚩आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है।  प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है।

🚩इसी प्रतिपदा के दिन आज से #उज्जैनी #नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांत शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा।

🚩महाराज विक्रमादित्य ने आज से राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी ।

🚩महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। इसी दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया।

🚩यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्ठर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया।

🚩आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं।

🚩कैसे मनाये नूतन वर्ष...???

🚩1- मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य , शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कालेज आदि सभी  मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भगवा ध्वजा फेराकर सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें  ।

🚩तो देखा आपने कितनी महान है हमारी भारतीय संस्कृति...!!!

🚩तो अब से सभी भारतीय संकल्प ले कि अंग्रेजो द्वारा चलाया गया एक जनवरी को नववर्ष न मनाकर अपना महान हिन्दू धर्म वाला नववर्ष मनायेंगें।