Wednesday, January 10, 2018

भारतीय अपना राष्ट्रभाषा दिवस भूल गये, आज था विश्व हिन्दी दिवस, जानिये इतिहास

January 10, 2018

हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। #हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।
Indians forgot their National Language Day, Today was World Hindi Day, Know History

आज (10 जनवरी) विश्व हिंदी दिवस है , ये हमारी वो राष्ट्रभाषा है जिसका मूल देवनागरी लिपि माना जाता है।

दुनिया में पहला विश्व हिंदी दिवस भारत में नहीं बल्कि नार्वे में मनाया गया था । नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने तथा दूसरा और तीसरा विश्व हिन्दी दिवस भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वाधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ला की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था।

इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में, रविवार 10 जनवरी 2010 को, विश्व हिन्दी सचिवालय, शिक्षा, संस्कृति एवं मानव संसाधन मन्त्रालय, भारतीय उच्चायोग, इन्दिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र तथा हिन्दी संगठन के मिले-जुले सहयोग से विश्व हिन्दी दिवस 2010 मनाया गया।

जिसमें मुख्य अतिथि हंगरी के भारोपीय शिक्षा विभाग से आई हुई डॉ. मारिया नेज्यैशी थी इस उपलक्ष्य पर विश्व हिन्दी सचिवालय की एक रचना (एक विश्व हिन्दी पत्रिका) का भी लोकार्पण गणराज्य के राष्ट्रपति माननीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ जी के कर-कमलों द्वारा हुआ। इस अवसर पर भारतीय उच्चायोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर कविता-प्रतियोगिता के विजेताओं को भी सम्मानित किया गया, सम्मान उन सभी नवोदित कवियों का वास्तव में रहा जिनको अपनी कलात्मकता प्रेषित करने का एक मंच प्राप्त हुआ।

विश्व में हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

अपने अधिकतर भाषण अंग्रेजी में ही देने वाले भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी, 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।

हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जा रही है

दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार #हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली #भाषा बन चुकी है।

2005 में #दुनिया के 160 #देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी। लेकिन 2015 में दुनिया के 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब #हिंदी बोलने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है। चीन के 20 विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है।

भारत देश में 78 फीसद लोग बोलते हैं, हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है। लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है।

चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक #रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में #हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है। दुनिया में 64 करोड़ लोगों की #मातृभाषा हिंदी है। जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है।

भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है। भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।

हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो बाकायदा "विश्व हिंदी सचिवालय" की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है।

आपको बता दें कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपनी सिफारिशों में #सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में से धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और भारतीय भाषाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर शामिल करने पर जोर दिया है। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी #भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की सुविधा देने पर जोर दिया गया है।

हिंदी भाषा इसलिये दुनिया में प्रिय बन रही है क्योंकि #इस भाषा को देवभाषा #संस्कृत से लिया गया है जिसमें मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। जबकि अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द केवल 10,000 ही हैं ।

हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। #हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।

इंटरनेट पर अंग्रेजी को पछाड़कर राज करेगी हिंदी

#गूगल और #केपीएमजी की एक संयुक्त रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2021 तक इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं का राज होगा । हिंदी, बांग्ला, मराठी, तमिल और तेलुगु आदि #भारतीय भाषाओं के यूजर्स तेजी से बढ़ेंगे और अंग्रेजी के दबदबे को #खत्म कर देंगे ।

विदेशों में हिन्दी भाषा का उपयोग बढ़ रहा है लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि हमारे देश में ही कुछ आधुनिकता प्रेमी बोलने में संकोच करते हैं, कुछ वकील और संसद  हिंदी नहीं बोलना जानते हैं।

आज मैकाले की वजह से ही हमने मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । लेकिन आज दुनिया में हिंदी भाषा का महत्व जितना बढ़ रहा है उसको देखकर समझकर हमें भी हिंदी भाषा का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।

अपनी राष्ट्र एवं मातृभाषा की गरिमा को पहचानें ।
सरकारी विभाग, एवं इंटरनेट आदि सभी स्तर पर हिंदी का उपयोग करना चाहिए एवं #अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुँमुखी विकास में सहभागी बनें ।

Tuesday, January 9, 2018

ऐतिहासिक फैसला: 14 फरवरी को 50 हजार स्कूलों में होगा मातृ-पितृ पूजन

January 9, 2018
भारत देश को तोड़ने के लिए विदेशी ताकतें अलग-अलग प्रकार से हथकंडे अपना रही हैं, कभी स्कूलों में गलत इतिहास पढ़ाया जाना तो कभी मीडिया द्वारा भारतीय संस्कृति विरोधी एजेंडे चलना, कभी जातिवाद के नाम पर तोड़ना तो कभी विदेशी त्यौहारों को मनाकर भारतीय संस्कृति को तोड़ने का प्रयास करना ।

हाल ही में गए विदेशी त्यौहार क्रिसमस में केवल दिल्ली में 31 दिसम्बर की रात को शराब की खपत 30 करोड़ तक पहुँची ।  इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि देशभर में हुई मात्र शराब की खपत से  विदेशी कंपनियों ने कितने अरबों रुपये कमा लिये होंगे। मीडिया ने भी खूब जमकर प्रचार-प्रसार किया, जिसके कारण बलात्कार की घटनाएं बढ़ी, प्रदूषण का स्तर भी बढ़ा और युवावर्ग का जो चारित्रिक पतन हुआ उसकी भरपाई तो कौन कर सकता है ???
Historical Decision: On February 14, 50 thousand schools will be in the maternal grandfathers

इसी तरह अभी एक और बड़ा विदेशी त्यौहार आने वाला है वेलेंटाइन-डे । जिसमें युवक-युवतियां एक दूसरे को फूल देंगे, महंगे गिफ्ट देंगे, ग्रीटिंग कार्ड देंगे, शराब पीयेंगे, मांस खाएंगे, व्यभिचार करेंगे, पार्टियों करेंगे । जिससे देश के युवावर्ग की तबाही होगी और देश के अरबो-खबरों रुपये फिर पहुँच जाएंगे विदेशी कम्पनियों के पास ।

पश्चात संस्कृति के इस त्यौहार वेलेंटाइन-डे को रोकने के लिए झारखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है जिसमें सभी गवर्नमेंट स्कूलों में 14 फरवरी को वेलेंटाइन-डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जायेगा ।

झारखंड राज्य के लगभग 50 हजार सरकारी स्कूलों में मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम का आयोजन होगा। बच्चों को सांस्कारिक बनाने तथा उनमें अपने माता-पिता को भगवान तुल्य मानने की समझ विकसित करने को लेकर सभी स्कूलों में यह कार्यक्रम आयोजित होगा। स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की मंत्री नीरा यादव ने विभाग के प्रधान सचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह को पत्र लिखकर इस कार्यक्रम के आयोजन का निर्देश दिया है।

बकौल मंत्री, इस कार्यक्रम का आयोजन साल में एक दिन सभी स्कूलों में होगा। विभाग चाहे तो सुविधानुसार अलग-अलग दिनों में भी स्कूलों में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा सकता है। लेकिन अवकाश के दिन ही इस कार्यक्रम के आयोजन का निर्देश दिया गया है, ताकि माता-पिता बिना किसी परेशानी के उसमें शामिल हो सकें। कार्यक्रम में छात्र-छात्राएं अपने-अपने माता-पिता के पैर धोएंगे, उनकी आरती उतारेंगे तथा उन्हें अपने गले से लगाएंगे। मंत्री के अनुसार, जिस तरह की पूजा मंदिरों में भगवान की होती है। उसी भाव से बच्चे अपने माता-पिता की भी पूजा करेंगे। कार्यक्रम के दौरान माता-पिता से संबंधित गीत भी बजाए जाएंगे।

दो स्कूलों के कार्यक्रम से प्रभावित हुई मंत्री

दरअसल, रांची के धुर्वा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर तथा कोडरमा के स्वर्गीय लाटो नायक उच्च विद्यालय, नवाचट्टी-मरकच्चो में आयोजित इस तरह के कार्यक्रम में मंत्री शामिल हुई थी। इसी से प्रभावित होकर मंत्री ने इसे सरकारी स्कूलों में भी लागू करने का निर्णय लिया। बताया जाता है कि मरकच्चो के स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में मंत्री भावुक होकर रो पड़ी थी, जिससे कुछ देर के लिए कार्यक्रम रोक देना पड़ा था। 

झारखंड सरकार का फैसला सराहा गया, पूरे देश में लोग भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे हैं ।

आपको बता दे कि छत्तीसगढ़ सरकार ने तो पिछले कई साल से पूरे राज्य के स्कूलों में 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन लागू कर दिया है और हर साल 14 फरवरी को माता-पिता का पूजन किया जाता है ।

गौरतलब है कि पाश्चात्य सभ्यता की गन्दगी से युवावर्ग का चारित्रिक पतन होते देखकर हिन्दू संत आसारामजी बापू ने वर्ष 2007 से 14 फरवरी को वैलेंटाइन-डे की जगह "मातृ-पितृ पूजन दिवस" की अनूठी पहल की । जिसे उनके करोड़ो समर्थकों द्वारा देशभर में बड़े धूमधाम से स्कूलों, कॉलेजों, घरों,मंदिरों, पूजा स्थलों आदि पर मनाया जाने लगा । धीरे-धीरे इसमें कई हिन्दू संगठन जुड़ते चले गए और आज ये विश्वव्यापी अभियान के रूप में देखने को मिल रहा है ।

भारत में ही नहीं अमेरिका, दुबई, केनेडा आदि अनेक देशों में भी 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाया जाने लगा है ।  इस विश्वव्यापी अभियान से लाखों युवावर्ग पतन से बचे हैं एवं उनके जीवन में संयम व सदाचार के पुष्प खिले हैं ।

आज हम सभी का कर्तव्य बनता है कि पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण न करके अपनी महान संस्कृति की महानता समझे और दूसरों तक भी अपनी संस्कृति की सुवास पहुचाएं तथा उन्हें भी वैंलेंटाइन डे के दिन ‘मातृ-पितृ दिवस’ मनाने की सलाह दें।

Monday, January 8, 2018

महाराष्ट्र में जातीय दंगे एक भयंकर षड्यंत्र के तहत, कवि ने लिखी कविता

January 8, 2018
भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि अगर कोई भी मनुष्य उसकी एक बार महिमा जान ले तो फिर दूसरे धर्म में जाने की कभी इच्छा नही करेगा, इसलिए कुछ मत-पंथ सम्प्रदाय के ठेकेदार सोचते हैं कि उनके धर्म में ही सब रहेंगे तो हमारी तरफ कोई नही आयेगा इसलिए वे राष्ट्र विरोधी लोग षडयंत्र करके भारत के ही कुछ जयचन्दों को मोहरा बनाकर जाति-पाति में बांटकर आपस में लड़ाकर अपना मकसद सिद्ध करते हैं ।
Ethnic riots in Maharashtra, under a fierce conspiracy, poet poem written by
महाराष्ट्र पुणे में जातीय विद्वेष पैदा करती दलित रैली में,जिग्नेश-खालिद के दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर हिन्दू दलित भाइयों से अपील करती एक कवि ने कविता लिखी है
आइये जाने क्या लिखा है कवि ने...
रे मूरख हिन्दू जाग ज़रा,पहचान सत्य खो जायेगी,
ये धरा इन्हीं षड्यंत्रों से,हिन्दू विहीन हो जायेगी,
बेवजह नही मैं कहता हूँ,तस्वीर सरासर सम्मुख है,
खंडित भारत का स्वप्न लिए,पापी हमलावर सम्मुख है,
भगवान् ! वाह री दलित सोच!अंग्रेज विजय  पर ताम झाम?
पेशवा,महारों ने मारे?है जश्न इसी का?राम राम!
ये नीच सियासत है जिसका जिग्नेश मोहरा बन बैठा,
मौका पाकर वो जेहादी खालिद भी हम पर तन बैठा,
वामन,राजपूत,बनीटों के मटके फोड़े,क्या मतलब है?
दलितों का मंच बना,उसमें मुस्लिम जोड़े, क्या मतलब है?
खालिद का ख्वाब नही भूलो,इस्लाम समूचा करना है,
जिग्नेश कहे मोदी घटिया,राहुल को ऊंचा करना है,
दुर्भाग्य देश का देखो तो,अभिव्यक्ति बनी आजादी है,
अब दलित-मुस्लिमों के मुंह पर बस भारत की बर्बादी है,
अब तुर्क और मंगोलों से,केवट ने यारी कर डाली,
शबरी ने खाकर राजभोग,भगवान राम को दी गाली,
यह तेवर दलित समूहों के,गहरी साजिश के हिस्से हैं,
नफरत की खुली किताबों में,अलगाववाद के किस्से हैं,
हम आज़ादी के साथ चले,हाथों में लेकर हाथ चले,
बाबा का संविधान माना,लेकर उनके जज़्बात चले,
हमने ही छोड़ जमीदारी,भू हीनों  को भू दान दिए,
ज्योतिबा फुले को पूजा है,जगजीवन को सम्मान दिए,
हमने कुरीतियों के पन्ने अपने हाथों से फाड़े हैं,
पुरखों के पाप धुलाये हैं,समता के झंडे गाढ़े है,
दलितों की उन्नति बनी रहे,वंचित पिछड़ों को मान दिया,
आरक्षण नीति असमता की,रख मौन,सदा सम्मान दिया,
आरक्षण को स्वीकार किया,भाईचारे का भाव रखा,
हड़ताल,रैलियां,आगजनी,ऐसा कोई ना चाव रखा,
हम झुके तभी तुम उठ पाये,ये समरसता की धारा है,
मीरा कुमार,कोविंद राम,जय मायावती,पुकारा है,
कुछ एक बुराई के बदले,गौरव गाथा को मत कोसो,
मोदी से नफरत खूब करो,भारत माता को मत कोसो,
कब माँ अपने ही बेटो में अंतर का भाव सजाती हैं,
अपनी छाती से दुग्धपान सबको इक साथ कराती है,
मैं कोई नेता,पक्ष नही,भारत का आम निवासी हूँ,
मैं कवि गौरव चौहान यहाँ हर बेटे का अभिलाषी हूँ,
हम जैसे कितने लाख युवा,समरसता के परिचायक हैं,
इक थाली में खाने वाले,इक सुर में गाते गायक हैं,
ना ऊंच नीच की सोच रखें,पढ़ते लिखते हैं साथ यहाँ,
होटल,दफ्तर,मंदिर,राहों में सब दिखते हैं साथ यहाँ,
दो चार घटी घटनाओं को,यूं अत्याचार नही बोलो,
बहुवर्ग तुम्हारे साथ खड़ा,तुम तिल का ताड़ नही बोलो,
तुम कुछ लोगों की बातों में संस्कृति सम्मान भुला बैठे,
कुछ पंडों की मक्कारी में,अपने भगवान भुला बैठे,
हम दलित नही कहते तुमको,ये शब्द सियासत वाले हैं,
हम तुमको हिन्दू कहते हैं,हम सारे भारत वाले हैं,
गर हमने खींची तलवारें,तो ख्वाब सफल हो जाएंगे,
कासिम गजनी गौरी बाबर तब घर घर में घुस आएंगे,
जो खालिद तुम्हे सगे लगते,वो इक दिन रूप दिखाएंगे,
जेहादी कभी नही सुधरे,तुम पर भी छुरी चलाएंगे,
जिग्नेश भीम के बेटे ने,खालिद की भुजा संभाली है,
ये कीचड भीम नाम पर है,भगवान् बुद्ध को गाली है,
आओ मिलकर संकल्प करें,अस्तित्व न खोने देना है,
षड्यंत्र आधुनिक मुगलों के अब पूर्ण न होने देना है,
हम एक रहें,हम नेक रहे,हर मन गूंजे फरियादों से,
श्री राम-बुध्द न हारेंगे इन बाबर की औलादों से,
-कवि गौरव चौहान (इटावा उ.प्र)
हमारे देश में एक देशविरोधी गिरोह सक्रिय हैं।  जो कभी जाति के नाम पर, कभी आरक्षण के नाम पर, कभी इतिहास के नाम पर, कभी परम्परा के नाम पर देश को तोड़ने की साज़िश रचता रहता हैं।  इसके अनेक चेहरे हैं। नेता, चिंतक, लेखक, मीडिया, बुद्धिजीवी, पत्रकार, शिक्षक, शोधकर्ता, मानवअधिकार कार्यकर्ता, NGO, सेक्युलर, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील आदि आदि।  इस जमात का केवल एक ही कार्य होता है। इस देश की एकता ,अखंडता और सम्प्रभुता को कैसे बर्बाद किया जाये। इस विषय में षड़यंत्र करना।  यह जमात हर देशहित और देश को उन्नत करने वाले विचार का पुरजोर विरोध करती हैं। इस जमात की जड़े बहुत गहरी है। आज़ादी से पहले यह अंगेजों द्वारा पोषित थी। आज यह विदेशी ताकतों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा पोषित हैं।
देशवासी इन षड़यंत्रों से सावधान रहें जाती,पाती मे नही बंटकर एक बने रहें।

Sunday, January 7, 2018

राजस्थान पुलिस किसके इशारे पर कर रही है हिन्दुओं पर अत्याचार?


January 7, 2018

राजस्थान में हिन्दुओं ने कोंग्रेस से तंग आकर भाजपा को बहुतम से जिताया और वसुधंरा राजे मुख्यमंत्री बनी, भापजा सरकार आते ही हिन्दू संगठन एवं हिंदुत्वनिष्ठों ने खूब जश्न मनाया कि अब हम पर अत्यचार बंद होगा और अपराधियों को सजा होगी।
Rajasthan police is doing it at the behest of Hindus?

लेकिन राजस्थान में कुछ समय से देख रहे है कि उससे उल्टा हो रहा है, हिन्दुओं का दमन किया जा रहा है और उपद्रवियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

जयपुर में दंगे पर पुलिस चुप

कुछ दिन पहले की घटना है जयपुर में रामगंज में एकतरफा यातायात था। जाम होने के कारण पुलिसकर्मियों ने लोगों को हटाने का प्रयास किया। इस दौरान एक पुलिसकर्मी ने डंडे से हटाना शुरू किया तो साइकिल पर सवार मुस्लिम की पत्नी को भीड़ के कारण पीछे से डंडा लग गया, फिर वहीं हंगामा शुरू हो गया, बाद में वहाँ से पुलिस थाने गये और मुस्लिम पति ने कई मुसलमानों को बुलाकर बेरहमी से घायल होने तक पुलिस वाले को पीटा, फिर पुलिस थाने में आग लगा दी और जुलूस निकालकर पत्थरबाजी की, जिसमें कई पुलिस कर्मी घायल हो गये, कर्फ्यू लग गया।

बाद में उन उपद्रवियों के ऊपर किया गया केस भी वापिस ले लिया गया।

उदयपुर में हिंदुत्वनिष्ठों को भेजा जेल

दूसरी घटना है उदयपुर के पास राजमंद की, वहाँ की एक बेटी को जिहादी उठाकर ले गया तो उसकी शंभूलाल ने हत्या कर दी, उसके बाद उदयपुर में भारी मात्रा में मुसलमानों ने जुलूस निकाला जिसमें नारे लगाये कि हिन्दुस्तान में रहना होगा तो अल्लाहु अकबर कहना होगा। भारत ख्वाजा का देश है आदि आदि, देश विरोधी नारे लगाये गए । उसके बाद उपदेश राणा एवं हिन्दू संगठनों ने इन देशद्रोहियों के खिलाफ आवाज उठाई तो उनको जेल में डाल दिया गया।

जोधपुर में हिन्दू महासभा पर लाठीचार्ज

तीसरी घटना है जोधपुर की है मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शहर में खुलेआम नारे लगाए कि हिंदुस्तान में रहना होगा तो अल्ला हो अकबर कहना होगा इस पर प्रशासन द्वारा कार्यवाही न करने पर इसका विरोध शिवसेना के जिला प्रमुख सम्पत जी पुनिया और हिन्दू महासभा ने किया और जय श्री राम के नारे लगाये इसपर पुलिस ने अंधाधुंध लाठीचार्ज कर दिया। दूसरी ओर मुस्लिमों की गुस्ताखी का उनके पास कोई जवाब नहीं था।

बापू आसारामजी के भक्तों पर हुआ भयंकर लाठीचार्ज

हिन्दू संत बापू आसारामजी बापू जोधपुर जेल में 4 साल और 5 महीने से बिना सबूत बंद है उनकी जोधपुर सेंशन कोर्ट में सुनवाई चल रही है। बापू आसाराम के भक्त उनके दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में वहाँ पहुँचते है, वे शांतिपूर्ण दर्शन करते है लेकिन पुलिस उन पर बर्बरता से लाठीचार्ज करती है, शनिवार ( 6 जनवरी 2017) को बापू आसारामजी जब कोर्ट परिसर से निकल गये तो वहाँ उनकी भक्त महिलाओं एवं बच्चों पर भयंकर लाठीचार्ज किया गया, जिसका वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा ने बचाव किया तो उनको ही
उदयमंदिर थानाधिकारी मदन बेनीवाल ने धक्का लगा दिया और बहसबाजी करने लगा ।

राजस्थान के जोधपुर और उदयपुर में खुलेआम नारे लगे कि "हिंदुस्तान में रहना होगा तो अल्ला हो अकबर कहना होगा" । जिसने देश के करोड़ो हिन्दुओ के स्वाभिमान को गहरी चोट पहुंचाई। लेकिन पुलिस को ये गैर क़ानूनी नहीं लगा और प्रशासन आँख बंद करके देखता रहा। जैसे ही हिन्दू संगठनों ने विरोध किया तो पुलिस ने उनपर अंधाधुंध लाठीचार्ज कर दिया।

मुस्लिमों के खिलाफ कार्यवाही करने की पुलिस में  हिम्म्मत नही थी। राज्य में हिन्दुओं की सरकार होने के बावजूद भी हिन्दू संगठन के लोगों के साथ हो रहे अन्याय पर वसुंधरा सरकार क्यों चुप्पी साधे हैं ??


क्यों बार-बार माहौल खराब करने वाले कट्टर मजहबियों के खिलाफ करवाई नहीं कर रही है..??

क्या राजस्थान सरकार भी बंगाल की ममता सरकार की तरह हिंदुओं को दबाने की कोशिश कर रही है ??
क्या अब हिन्दू अपने ही राष्ट्र में सुरक्षित नहीं ??
आखिर क्यों राजस्थान सरकार जगह-जगह हिंदुओं पर हो रहे लाठीचार्ज पर चुप है ??

 जिस देश में हिंदुओं ने अपनी रक्षा के लिए और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए हिन्दूवादी सरकार चुनने में दिन-रात मेहनत की, उन #हिंदुत्वनिष्ठों को आज अपने ही देश में सुरक्षा नही मिल रही है  ।

क्या BJP सरकार सिर्फ नाम की हिंदुत्ववादी है ???

आज हिन्दुत्वनिष्ठों का एक ही कहना है कि अगर राजस्थान सरकार को अगली बार भी जीत हासिल करनी है तो हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार बन्द करें और देशद्रोहियों पर कड़ी कार्यवाही करें।

Saturday, January 6, 2018

जानिए भीमा कोरेगांव की घटना की वास्तविकता क्या है? उसके पीछे कौन षडयंत्र कर रहा है

January 5, 2018

महाराष्ट्र पुणे के समीप भीमा कोरेगांव में एक स्मारक बना हुआ है। कहते हैं कि आज से 200 वर्ष पहले इसी स्थान पर बाजीराव पेशवा द्वितीय की फौज को अंग्रेजों की फौज ने हराया था। महाराष्ट्र में दलित कहलाने वाली महार जाति के सैनिकों ने अंग्रेजों की ओर से युद्ध में भाग लिया था। हम इस लेख में यह विश्लेषण करेंगे कि युद्ध का परिणाम क्या था और कौन इसका राजनीतिक लाभ उठा रहा हैं।
Know what is the reality of the incident of Bhima Koregaon? Who is conspiring behind him

इतिहास में लड़ी गई अनेक लड़ाईयों के समान ही यह युद्ध भी एक सामान्य युद्ध के रूप में दर्ज किया गया था। डॉ अम्बेडकर ने 1927 में कोरेगांव जाकर 200 वर्ष पहले हुए युद्ध को महार दलितों की ब्राह्मण पेशवा पर जीत के समान चर्चित करने का प्रयास किया था। जबकि यह युद्ध था विदेशी अंग्रेजों और भारतीय पेशवा के मध्य। इसे जातिगत युद्ध के रूप में प्रचलित करना किसी भी प्रकार से सही नहीं कहा जा सकता। अंग्रेजों की सेना में सभी वर्गों के सिपाही थे। उसमें महार रेजिमेंट के सिपाही भी शामिल थे। पेशवा की फौज में भी उसी प्रकार से सभी वर्गों के सिपाही थे। जिसमें अनेक मुस्लिम भी शामिल थे। युद्ध केवल व्यक्तियों के मध्य नहीं लड़ा जाता। युद्ध तो एक विचारधारा का दूसरी विचारधारा से होता है। फिर इस युद्ध को अत्याचारी ब्राह्मणों से पीड़ित महारों के संघर्ष गाथा के रूप में चित्रित करना सरासर गलत हैं। क्यूंकि इस आधार पर तो 1857 की क्रांति को भी आप सिख बनाम ब्राह्मण (मंगल पांडेय जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश के सिपाही) के रूप में चित्रित करेंगे।  इस आधार पर तो आप दोनों विश्वयुद्धों को भी अंग्रेजों की विजय नहीं अपितु भारतीयों की विजय कहेंगे। क्यूंकि दोनों विश्वयुद्ध में पैदल चलने वाली टुकड़ियों में भारतीय सैनिक बहुत बड़ी संख्या में शामिल थे।

इससे यही सिद्ध होता हैं कि यह एक प्रकार से पेशवाओं को ब्राह्मण होने के नाते अत्याचारी और महार को दलित होने के नाते पीड़ित दिखाने का एक असफल प्रयास मात्र था।

अब हम यह विश्लेषण करेंगे कि वास्तव में कोरेगांव के युद्ध में क्या हुआ था। सत्य यह है कि कोरेगांव के युद्ध में अंग्रेजों को विजय नहीं मिली थी। जेम्स ग्रैंड डफ़ नामक अंग्रेज अधिकारी एवं इतिहासकार लिखते है कि "शाम को अँधेरा होने के बाद जितने भी घायल सैनिक थे उनको लेकर कप्तान स्टैंटन गांव से किसी प्रकार निकले और पूना की ओर चल पड़े। रास्ते में राह बदल कर वो सिरोर की ओर मुड़ गए। अगले दिन सुबह 175 मृत और घायल सैनिकों के साथ वो अपने गंतव्य पहुंचे। अंग्रेजी सेना के एक तिहाई घोड़े या तो मारे जा चुके थे अथवा लापता थे। "

(सन्दर्भ-A History of the Mahrattas, Volume 3,By James Grant Duff page 437 )

क्या आप अंग्रेज इतिहासकार की बात भी नहीं मानेगे जो अपनी कौम को सदा विजयी और श्रेष्ठ बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते? चलो हम मान भी लें कि अंग्रेजों को विजय मिली। तो भी इस युद्ध को हम 'दलित बनाम ब्राह्मण' किस आधार पर मानेंगे? कोरेगांव युद्ध में एक भी महार सिपाही का नाम किसी सेना के बड़े पद पर लिखा नहीं मिलता। यह यही दर्शाता है कि महार सैनिक केवल पैदल सेना के सदस्य थे। आपको यह जानकर भी अचरज होगा कि कोरेगांव युद्ध को अंग्रेजों ने कभी अपनी विजय तक नहीं माना। महार सैनिकों ने युद्ध में अंग्रेजों की ओर से भाग लिया। इसका ईनाम उन्हें आगे चल कर कैसे मिला। यह आगे जानेगे। 

बहुत कम लोग इतिहास के इस तथ्य को जानते हैं कि महार सैनिक मराठा सेना के अभिन्न अंग थे। छत्रपति शिवाजी की सेना में महार बड़ी संख्या में ऊँचें पदों पर कार्यरत थे। शिवांक महार को उनकी वीरता से प्रभावित होकर शिवाजी के पुत्र राजाराम ने एक गांव तक भेंट किया था। शिवांक महार के पोते जिसका नाम भी शिवांक महार था ने 1797 में परशुराम भाऊ की निज़ाम के साथ हुए युद्ध में प्राणरक्षा की थी। नागनक महार ने मराठों के मुसलमानों के साथ हुए युद्ध में विराटगढ़ का किला जीता था जिसके ईनाम स्वरुप उसे सतारा का पाटिल बनाया गया था।  बाजीराव पेशवा प्रथम की फौज में भी अनेक महार सैनिक कार्य करते थे। इससे यही सिद्ध हुआ कि अंग्रेजों की सेना के महार सैनिकों ने पेशवा की सेना के दलित/महार सैनिकों के साथ युद्ध किया था। पेशवा माधवराव ने अपने राज्य में बेगार प्रथा पर 1770 में ही प्रतिबन्ध लगा दिया था। आप सभी जानते है कि बहुत काल तक अंग्रेज हमारे देश के दलितों को बेगार बनाकर उन पर अत्याचार करते रहते थे। एक बार पेशवा के राज्य में किसी विवाद को लेकर ब्राह्मणों ने महारों के विवाह करवाने से मना कर दिया था। इस पर महारों ने पेशवा से ब्राह्मणों की शिकायत की थी। पेशवा ने ब्राह्मणों को महार समाज के विवाह आदि संस्कार करवाने का आदेश दिया था। न मानने वाले ब्राह्मण के लिए दंड और जुर्माने का प्रावधान पेशवा ने रखा था। यह ऐतिहासिक तथ्य आपको किसी पुस्तक में नहीं मिलते।

1857 के विपल्व में भी 100-200 महार सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया था। 1894 तक आते आते अंग्रेजों ने महार सैनिकों को अपनी सेना में लेना बंद कर दिया था। अंग्रेजों ने महारों को अछूत घोषित कर सेना में लेने से मना कर दिया।  बाबा वलंगकर (जो स्वयं महार सैनिक थे) ने अंग्रेजों को पत्र लिखकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया था कि महार क्षत्रिय है और शिवाजी के समय से ही क्षत्रिय के रूप में सेना में कार्य करते आये हैं। जबकि अंग्रेज महारों को क्षत्रिय न मानकर अछूत मानते थे।  प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों ने कुछ महारों को सेना में स्थान दिया। मगर युद्ध के पश्चात फिर से बंद कर दिया। बेरोजगार महारों से बेगार कार्य करवाकर बिना सेवा शुल्क दिए अंग्रेजों के अदने से अदने अफसर उन्हें धमकी देकर भगा देते थे। डॉ अम्बेडकर ने महारों को सरकारी सेना में लेने और महार रेजिमेंट बनाने के लिए अंग्रेजों से नियम बनाने का प्रस्ताव भेजा था। बहुत कम लोग जानते है कि डॉ अम्बेडकर को इस कार्य में हिन्दू महासभा के वीर सावरकर और बैरिस्टर जयकर एवं डॉ मुंजे का साथ मिला था। वीर सावरकर ने तो रत्नागिरी में महार सम्मलेन की अध्यक्षता तक की थी। अंग्रेजों का लक्ष्य तो महारों का विकास करना नहीं अपितु उनका शोषण करना था।आगे 1947 के बाद ही डॉ अम्बेडकर द्वारा स्वतंत्र भारत में महार रेजिमेंट की स्थापना हुई। इससे अंग्रेज महारों के विकास के लिए कितने गंभीर थे। यह पता चलता है।

अभी तक यह सिद्ध हो चुका है कि न तो पेशवा की कोरेगांव में हार हुई थी।  न ही अंग्रेज कोई महारों के हितैषी न्यायप्रिय शासक थे। न ही पेशवा कोई अत्याचारी शासक थे। अब इस षड़यंत्र को कौन और क्यों बढ़ावा दे रहा हैं?  इस विषय पर चर्चा करेंगे। हमारे देश में एक देशविरोधी गिरोह सक्रिय हैं।  जो कभी जाति के नाम पर, कभी आरक्षण के नाम पर, कभी इतिहास के नाम पर, कभी परम्परा के नाम पर देश को तोड़ने की साज़िश रचता रहता हैं।  इसके अनेक चेहरे हैं। नेता, चिंतक, लेखक, मीडिया, बुद्धिजीवी, पत्रकार, शिक्षक, शोधकर्ता, मानवअधिकार कार्यकर्ता, NGO, सेक्युलर, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील आदि आदि।  इस जमात का केवल एक ही कार्य होता है। इस देश की एकता ,अखंडता और सम्प्रभुता को कैसे बर्बाद किया जाये। इस विषय में षड़यंत्र करना।  यह जमात हर देशहित और देश को उन्नत करने वाले विचार का पुरजोर विरोध करती हैं। इस जमात की जड़े बहुत गहरी है। आज़ादी से पहले यह अंगेजों द्वारा पोषित थी। आज यह विदेशी ताकतों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा पोषित हैं। संघ विचारक वैद्य जी द्वारा इसका नामकरण ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड यथार्थ रूप में किया गया है। जो अक्षरत: सत्य है। अब आप देखिये कोरेगांव को लेकर हुए दंगों को मीडिया दलित बनाम हिन्दू के रूप में चित्रित कर रहा हैं।  क्या दलित समाज हिन्दुओं से कोई भिन्न समाज है? दलित समाज तो हिन्दू समाज का अभिन्न अंग हैं। दलितों को हिन्दू समाज से अलग करने के लिए ऐसा दर्शाया जाता हैं।

यह कोई आज से नहीं हो रहा। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा 1924 में कांग्रेस के कोकानाडा सेशन में मुहम्मद अली (अली बंधू) ने मंच पर सार्वजानिक रूप से उस समय वास कर रहे 6 करोड़ दलित हिन्दुओं को आधा-आधा हिन्दुओं और मुसलमानों में विभाजित करने की मांग की थी। महात्मा गाँधी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। जबकि उस काल के सबसे प्रभावशाली समाज सुधारक एवं नेता स्वामी श्रद्धानन्द ने मंच से ही दलित हिन्दुओं को विभाजित करने की उनकी सोच का मुंहतोड़ उत्तर दिया था। स्वामी श्रद्धानन्द ने उद्घोषणा की थी कि हिन्दू समाज जातिवाद रूपी समस्या का निराकरण कर रहा हैं और अपने प्रयासों से दलित हिन्दुओं को उनका अधिकार दिलाकर रहेगा।

1947 के पश्चात जातिवाद को मिटाने के स्थान पर उसे और अधिक बढ़ावा दिया गया। यह बढ़ावा इसी जमात ने दिया। जब दो भाइयों का आपस में विवाद होता है  तो तीसरा पंच बनकर लाभ उठाता है। यह प्रसिद्द लोकोक्ति है। आज भी यही हो रहा है। पहले जातिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है फिर दलितों को हिन्दुओं से अलग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।  आप स्वयं बताये आज देश में कहीं कोई दलित गले में मटकी लटकाएं और पीछे झाड़ू बांध कर चलता है। नहीं!
 क्या कोई दलित मुग़लों की देन मैला ढोहता है, नहीं!
आज आपको प्राय: सभी हिन्दू बिना जातिगत भेदभाव के एक साथ बैठ कर शिक्षा ग्रहण करते, भोजन करते, व्यवसाय करते दिखेंगे। बड़े शहरों में तो जातिवाद लगभग समाप्त ही हो चूका है। एक आध अपवाद अगर है भी, तो उसका निराकरण समाज में जातिवाद उन्मूलन का सन्देश देकर किया जा सकता हैं।

मगर दलित और सवर्ण के रूप में विभाजित कर जातिवाद का कभी निराकरण नहीं हो सकता। यह अटल सत्य है। दलित हिन्दू अगर हिन्दू समाज से अलग होगा तो उसको ये विदेशी ताकतें चने के समान चबा जाएगी। एकता में शक्ति है। यह सर्वकालिक और व्यावहारिक सत्य है। दलित हिन्दुओं को यह समझना होगा कि अपने निहित स्वार्थों के लिए भड़काया जा रहा हैं। जिससे हिन्दू समाज की एकता भंग हो और विदेशी ताकतों को देश को अस्थिर करने का मौका मिल जाये। 

आज हर हिन्दू अगर ईमानदारी से जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष करने का दृढ़ संकल्प ले, तो यह देशविरोधी जमात कभी अपने षड़यंत्र में सफल नहीं हो पायेगी। यही समय की मांग है और यही एकमात्र विकल्प भी हैं। अन्यथा भीमा कोरेगांव को लेकर हुई घटनाएं अगर अलग रूप में ऐसे ही सामने आती रहेगी। -डॉ विवेक आर्य

Friday, January 5, 2018

मीडिया देशहित में है या देश विरोधी? पढ़िए ताजा रिपोर्ट

January 5, 2018

 सभी भारतवासी जानते है कि अंग्रेजों ने भारत पर 200 साल तक राज किया, देश को लूटने के साथ साथ भारतवासियों पर अनगिनत अत्याचार किये, बहन-बेटियों की इज्जत लूटी, मासूमों को सूली पर चढ़ाया । देश को गुलामी की इन जंजीरों से छुड़ाने के लिये भारत के असंख्य वीरों ने बलिदान दिया । जिसके फलस्वरूप 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ ।

पर आगे जाकर धीरे-धीरे लोग पश्चिमी संस्कृति की ओर आकर्षित होने लगे । शरीर से तो नहीं पर मानसिक रूप से उनके गुलाम बनते गये, भारत में कान्वेंट स्कूल के माध्यम से हिन्दू संस्कृति को नीचा और पाश्चात्य कल्चर को ऊंचा दिखाकर हमारी भावी पीढ़ी को मानसिक रूप से गुलाम बनाने का जो उनका एजेंडा था इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली ।
Media is in the countryside or anti-national? Read the latest report

आज हम देख रहे हैं कि आज की भावी पीढ़ी अपनी संस्कृति से विमुख पाश्चात्य कल्चर की चकाचौंध से आकर्षित है, ऐसे कान्वेंट स्कूलों से पढ़कर निकलने वाले विद्यार्थियों में से कुछ आज भारत में पत्रकार बन चुके हैं । जिनका एक ही एजेंडा है किसी भी तरह हिन्दू संस्कृति, हिन्दू संतों, हिन्दू कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाना । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 80% से ऊपर मीडिया हाउस को फंडिग विदेश से होती है  ।


भारत को जितना नुकसान अंगेज नहीं पहुँचा पाए उससे भी ज्यादा नुकसान आज की इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पहुँचा रही है अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ।

अगर आप गौर करेंगे तो आपको देखने को मिलेगा कि जो मीडिया होली पर पानी बचाने, दिवाली पर पटाखे, जन्माष्टमी पर दही-हांडी, शिवरात्रि पर दूध चढ़ाने के विरुद्ध campaign चलाती है  वो मीडिया ईसाईयों के त्यौहार 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक को खूब कवरेज देती है । जबकि इन दिनों में शराब पीना, मांस खाना, डांस पार्टियां करना, महिलाओं से छेड़खानी करना, बलात्कार के किस्से आदि और दिनों की अपेक्षा ज्यादा देखने को मिलते हैं ।भारत में 25 दिसम्बर से 1 जनवरी  के दौरान शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन, आत्महत्या जैसी घटनाएँ, किशोर-किशोरियों व युवक युवतियों की तबाही एवं अवांछनीय कृत्य खूब होते हैं। इस साल केवल दिल्ली में 31 दिसम्बर की रात को शराब की 30 करोड़ की खपत हुई ।

 दूसरी ओर हमारी भारतीय संस्कृति जहां 22 दिसम्बर से 27 दिसम्बर तक में गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों से भारत को मुक्त कराने के लिए अपने चार बेटों की कुर्बानी दी थी, दूसरा सबसे पहले क्रूर औरंगजेब के खिलाफ लड़ने वाले, उसकी तीन लाख सेना को धूल चटाने वाले वीर गोकुल सिंह 1 जनवरी को शहीद हो गये थे । ऐसी प्रेरणास्त्रोत खबरों को मीडिया कवरेज कभी नहीं मिला ।

हिन्दू संस्कृति की रक्षा के लिये हिन्दू संत आसाराम बापू ने देशभर में 2014 से  उनके करोड़ो अनुयायियों द्वारा "25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक तुलसी पूजन, जप माला पूजन, गौ पूजन, हवन, गौ गीता गंगा जागृति यात्रा, बच्चों व महिला जागृति शिविर, नशामुक्ति अभियान, योगा,  सत्संग अभियान चलाया । देशभर में इन सब कार्यक्रमों को व्यापक स्तर पर देखा गया जिसमें कई हिन्दू संगठनों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया पर इन खबरों को कोई मीडिया कवरेज नहीं मिला ।

बापू आशारामजी की प्रेरणा से आयोजित हुए इन कार्यक्रमों से देशवासियों की रक्षा हुई, क्राइम कम हुए, व्यसनियों के व्यसन छूटे, विदेशी वस्तुओं का उपयोग नही हुआ । बलात्कार की घटनाओं में रुकावट आई, आत्महत्यायें कम हुई, देश के अरबो-खबरों रुपये बच गए । इससे भटके देशवासी अपनी संस्कृति की तरफ लौट रहे है और पश्चिमी संस्कृति को छोड़ रहे है ।

उपरोक्त सभी बातों पर गौर करें तो ये सिद्ध होता है कि मीडिया हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध है जो देश हित में नहीं है । इसलिए आप भी मीडिया के बहकावे में आकर अपनी भारतीय संस्कृति को न भूले और पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण से बचे ।

Thursday, January 4, 2018

जातिवाद, छुआछूत नहीं है हिन्दू धर्म का हिस्सा, यह देश को तोड़ने का भयंकर षडयंत्र

January 4, 2018

आज देश में जातिवाद को लेकर भयंकर राजनीति चल रही है जो देश के लिए बहुत खतरनाक है, अंग्रेजो की नीति "फूट डालो, राज करो" आज फिर से प्रत्यक्ष देखने को मिल रही है । आज भी जिस तरह से देश में माहौल बनाया जा रहा है उससे तो लग रहा है कि देश विरोधी ताकतों द्वारा एक स्क्रिप्ट तैयार की गई है और उनके द्वारा बड़ी फंडिग हो रही है जिसके जरिये कुछ लोगों को मोहरा बनाकर जैसे कि उमर खालिद, जिग्नेश मेवाणी आदि लोग नेता रूप में खड़े हो गये और देश में जातिवाद फैलाकर एक दूसरे में जहर भर रहे हैं ।
Racism is not untouchable, part of Hindu religion; This is a terrible conspiracy to break the country.

पहले हरियाणा में जाट लोगों को भड़काया और पूरा हरियाणा जलाया  फिर गुजरात में पटेलों को भड़काया और दंगे करवाये, अभी महाराष्ट्र में भी ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों के बीच फूट डलवा कर महाराष्ट्र में आग लगा रहे हैं ।

हिन्दू धर्म में जातिवाद नही है, वर्ण व्यवस्था है न कि छोटी जाति बड़ी जाति ।
सबको अपना अपना काम दिया हुआ है जैसे कि ब्राह्मणों को वेद-पाठ कर्मकांड आदि का, क्षत्रियों को देश की रक्षा का, वैश्यों को व्यापक करने का और शूद्रों को पशुपालन एवं चमड़े और मांस का  कारोबार और बच्चों के जन्म के समय प्रसव कराने का कार्य।

आजादी के बाद से राजनैतिक स्वार्थों के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत शूद्रों को दलित नाम दिया गया और उनके उत्थान के नाम पर जो खेल खेला गया, उससे सबसे ज्यादा दलित प्रभावित हुए। दलितों से उनका पारंपरिक आय का स्रोत छीना गया।

प्राचीन भारत जो वर्ण व्यवस्था थी उसमें हर जाति के पास रोजगार के साधन उपलब्ध थे। कुम्हार बर्तन बनाता, लुहार लोहे का काम करता, हजाम हजामत का काम करता, अहीर पशुपालन करते, तेली तेल का धंधा करता, वगैरह... कोई भी जाति दूसरी जाति का काम छीनने का प्रयास नही करती थी।

इस व्यवस्था के अनुसार दलितों ( शुद्र) का जो मुख्य पेशा था वह था- पशुपालन, मांस व्यवसाय , चमड़ा व्यवसाय और सबसे बड़ा बच्चों के जन्म के समय प्रसव कराने का कार्य।

एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत दलितों को यह एहसास दिलाया गया कि आप जो काम कर रहे हैं वह गन्दा है, घृणित है। फलस्वरूप वे अपने पेशे से दूर होते गए और उनसे ये सारे धंधे छीन लिए गए। पर दलितों के छोड़ देने से क्या ये काम बन्द हो गए?

आज तनिक नजर उठा कर देखिये, चमड़ा उद्योग और मांस उद्योग का वार्षिक टर्न ओवर लाखों करोड़ों का नहीं बल्कि अरबों-खबरों का है। आज यह व्यवसाय किस जाति के हाथ में है?

आपकी हमारी आँखों के सामने दलितों से उनकी आमदनी का स्रोत छीन कर एक अन्य समुदाय के झोले में डाल दिया गया और हम यह चाल समझ नही पाये।

उत्तर प्रदेश में जय भीम जय मीम के धोखेबाज नारे और महाराष्ट्र में दलितों को फंसाकर उन्हें अन्य हिन्दुओ के विरुद्ध भड़काने वालों की मंशा साफ है, वे आपको सौ टुकड़े में तोड़ कर दलितों के सारे हक लूटना चाहते हैं। तनिक ध्यान से देखिये, दलितवाद का झूठा खेल अधिकांश वे ही लोग क्यों खेल रहे हैं जिन्होंने दलितों के पेशे पर डकैती डाली है।

विदेशी पैसे से पेट भर कर समाज में आग लगाने का प्रयास करने वाले इन चाइना परस्त लोगों के धोखे में न आइये। ये देश जितना चन्द्रगुप्त का है उतना ही चन्द्रगुप्त मौर्य का। जितना महाराणा उदयसिंह का है उतना ही पन्ना धाय का। जितना बाबू कुंवर सिंह का है उतना ही बिरसा भगवान का।

भारतीय इतिहास का पहला सम्राट "चन्द्रगुप्त मौर्य" जाति से शूद्र था, और उसे एक सामान्य बालक से सत्ता का शिखर पुरुष बनाने वाला चाणक्य एक ब्राम्हण। सदियाँ गवाह हैं, भारत का इतिहास मौर्य वंश के बिना बिल्कुल अधूरा है।

धर्म की गलत व्याखाओं का दौर प्राचीन समय से ही जारी है। ऋषि वेद व्यास ब्राह्मण नहीं थे, जिन्होंने पुराणों की रचना की। तब से ही वेद हाशिये पर धकेले जाने लगे और समाज में जातियों की शुरुआत होने लगी। क्या हम शिव को ब्राह्मण कहें? विष्णु कौन से समाज से थे और ब्रह्मा की कौन सी जाति थी? क्या हम कालीका माता और भैरव को दलित समाज का मानकर पूजना छोड़ दें?

आज के शब्दों का इस्तेमाल करें तो ये लोग दलित थे-ऋषि कवास इलूसू, ऋषि वत्स, ऋषि काकसिवत, महर्षि वेद व्यास, महर्षि महिदास अत्रैय, महर्षि वाल्मीकि, हनुमानजी के गुरु मातंग ऋषि आदि ऐसे महान वेदज्ञ हुए हैं जिन्हें आज की जातिवादी व्यवस्था दलित वर्ग का मान सकती है। ऐसे हजारों नाम गिनाएं जा सकते हैं जो सभी आज के दृष्टिकोण से दलित थे। वेद को रचने वाले, स्मृतियों को लिखने वाले और पुराणों को गढ़ने वाले ब्राह्मण नहीं थे।

अक्सर जातिवाद, छुआछूत और स्वर्ण, दलित वर्ग के मुद्दे को लेकर धर्मशास्त्रों को भी दोषी ठहराया जाता है, लेकिन यह बिल्कुल ही असत्य है। इस मुद्दे पर धर्म शस्त्रों में क्या लिखा है यह जानना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस मुद्दे को लेकर हिन्दू सनातन धर्म को बहुत बदनाम किया गया है और किया जा रहा है।

पहली बात यह कि जातिवाद प्रत्येक धर्म, समाज और देश में है। हर धर्म का व्यक्ति अपने ही धर्म के लोगों को ऊंचा या नीचा मानता है। क्यों? यही जानना जरूरी है। लोगों की टिप्पणियां, बहस या गुस्सा उनकी अधूरी जानकारी पर आधारित होता है। कुछ लोग जातिवाद की राजनीति करना चाहते हैं इसलिए वह जातिवाद और छुआछूत को और बढ़ावा देकर समाज में दीवार खड़ी करते हैं और ऐसा भारत में ही नहीं दूसरे देशों में भी होता रहा है।

दलितों को 'दलित' नाम हिन्दू धर्म ने नहीं दिया, इससे पहले 'हरिजन' नाम भी हिन्दू धर्म के किसी शास्त्र ने नहीं दिया। इसी तरह इससे पूर्व के जो भी नाम थे वह हिन्दू धर्म ने नहीं दिए। आज जो नाम दिए गए हैं वह पिछले 70 वर्ष की राजनीति की उपज है और इससे पहले जो नाम दिए गए थे वह पिछले 900 साल की गुलामी की उपज है।

बहुत से ऐसे ब्राह्मण हैं जो आज दलित हैं, मुसलमान है, ईसाई हैं या अब वह बौद्ध हैं। बहुत से ऐसे दलित हैं जो आज ब्राह्मण समाज का हिस्सा हैं। यहां ऊंची जाति के लोगों को स्वर्ण कहा जाने लगा हैं। यह स्वर्ण नाम भी हिन्दू धर्म ने नहीं दिया।

भारत ने 900 साल मुगल और अंग्रेजों की गुलामी में बहुत कुछ खोया है खासकर उसने अपना मूल धर्म और संस्कृति खो दी है। खो दिए हैं देश के कई हिस्से। यह जो भ्रांतियां फैली है और यह जो समाज में कुरीतियों का जन्म हो चला है इसमें गुलाम जिंदगी का योगदान है। जिन लोगों के अधीन भारतीय थे उन लोगों ने भारतीयों में फूट डालने के हर संभव प्रयास किए और इसमें वह सफल भी हुए।

अब यह भी जानना जरूरी है कि हिन्दू धर्म के शास्त्र कौन से हैं। क्योंकि कुछ लोग उन शास्त्रों का हवाला देते हैं जो असल में हिन्दू शास्त्र है ही नहीं। हिन्दुओं का धर्मग्रंथ मात्र वेद है, वेदों का सार उपनिषद है जिसे वेदांत कहते हैं और उपनिषदों का सार गीता है। इसके अलावा जिस भी ग्रंथ का नाम लिया जाता है वह हिन्दू धर्मग्रंथ नहीं है।

मनुस्मृति, पुराण, रामायण और महाभारत यह हिन्दुओं के धर्म ग्रंथ नहीं है। ये ग्रन्थ सभी मनुष्यों के लिए बनाये गए हैं । इन ग्रंथों में हिन्दुओं का इतिहास दर्ज है, लेकिन कुछ लोग इन ग्रंथों में से संस्कृत के कुछ श्लोक निकालकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि ऊंच-नीच की बातें तो इन धर्मग्रंथों में ही लिखी है। असल में यह काल और परिस्थिति के अनुसार बदलते समाज का चित्रण है। दूसरी बात कि इस बात की क्या गारंटी कि उक्त ग्रंथों में जानबूझकर संशोधन नहीं किया गया होगा। हमारे अंग्रेज भाई और बाद के कम्युनिस्ट भाइयों के हाथ में ही तो था भारत के सभी तरह के साहित्य को समाज के सामने प्रस्तुत करना तब स्वाभाविक रूप से तोड़ मरोड़कर बर्बाद कर दिया।

कर्म का विभाजन-वेद या स्मृति में श्रमिकों को चार वर्गो- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र-में विभक्त किया गया है, जो मनुष्यों की स्वाभाविक प्रकृति पर आधारित है। यह विभक्तिकरण कतई जन्म पर आधारित नहीं है। आज बहुत से ब्राह्मण व्यापार कर रहे हैं उन्हें ब्राह्मण कहना गलत हैं। ऐसे कई क्षत्रिय और दलित हैं जो आज धर्म-कर्म का कार्य करते हैं तब उन्हें कैसे क्षत्रिय या दलित मान लें? लेकिन पूर्व में हमारे देश में परंपरागत कार्य करने वालों का एक समाज विकसित होता गया, जिसने स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरों को निकृष्ट मानने की भूल की है तो उसमें हिन्दू धर्म का कोई दोष नहीं है। यदि आप धर्म की गलत व्याख्या कर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं तो उसमें धर्म का दोष नहीं है।

प्राचीन काल में ब्राह्मणत्व या क्षत्रियत्व को वैसे ही अपने प्रयास से प्राप्त किया जाता था, जैसे कि आज वर्तमान में एमए, एमबीबीएस आदि की डिग्री प्राप्त करते हैं। जन्म के आधार पर एक पत्रकार के पुत्र को पत्रकार, इंजीनियर के पुत्र को इंजीनियर, डॉक्टर के पुत्र को डॉक्टर या एक आईएएस, आईपीएस अधिकारी के पुत्र को आईएएस अधिकारी नहीं कहा जा सकता है, जब तक कि वह आईएएस की परीक्षा नहीं दे देता। ऐसा ही उस काल में गुरुकुल से जो जैसी भी शिक्षा लेकर निकलता था उसे उस तरह की पदवी दी जाती थी।

इस तरह मिला जाति को बढ़ावा-दो तरह के लोग होते हैं- अगड़े और पिछड़े। यह मामला उसी तरह है जिस तरह की दो तरह के क्षेत्र होते हैं विकसित और अविकसित। पिछड़े क्षेत्रों में ब्राह्मण भी उतना ही पिछड़ा था जितना की दलित या अन्य वर्ग, धर्म या समाज का व्यक्ति। पिछड़ों को बराबरी पर लाने के लिए संविधान में प्रारंभ में 10 वर्ष के लिए आरक्षण देने का कानून बनाया गया, लेकिन 10 वर्ष में भारत की राजनीति बदल गई। सेवा पर आधारित राजनीति पूर्णत: वोट पर आधारित राजनीति बन गई।

आज लगता है राष्ट्र विरोधी ताकतें भारत को फिर से तोड़ने का सपना देख रही है उसके लिए भारत में कुछ देश विरोधी लोगों को भारी फंडिग दी जा रही है जिसमें मीडिया भी शामिल है अतः आप जातिवाद में न उलझिए, दलित शब्द हिन्दुओं में था ही नही बल्कि जो वर्णव्यवस्था है उसमें सभी को अपने अपने काम दिए है वो पूर्ण रूप से करे बाकि देशविरोधी और मीडिया के बहकाने में आकर देश को खंड-खंड करने का पाप न करें ।